"मेरा वेतन / ताराप्रकाश जोशी" के अवतरणों में अंतर
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मेरा वेतन ऐसे रानी | मेरा वेतन ऐसे रानी | ||
− | जैसे गरम तवे पे पानी | + | जैसे गरम तवे पे पानी । |
− | एक कसैली | + | एक कसैली कैण्टीन से |
− | थकन उदासी का नाता है | + | थकन उदासी का नाता है, |
− | वेतन के दिन सा ही निश्चित | + | वेतन के दिन - सा ही निश्चित |
− | पहला बिल उसका आता है | + | पहला बिल उसका आता है, |
− | हर उधार की रीत उम्र सी | + | हर उधार की रीत उम्र - सी |
− | जो पाई है सो लौटानी | + | जो पाई है सो लौटानी । |
− | + | दफ़्तर से घर तक हैं फैले | |
− | + | कर्ज़दाताओं के गर्म तकाजे, | |
ओछी फटी हुई चादर में | ओछी फटी हुई चादर में | ||
− | एक | + | एक ढकूँ तो दूजी लाजे, |
− | + | क़र्ज़ा लेकर क़र्ज़ चुकाना | |
− | अंगारों से आग भुजानी | + | अंगारों से आग भुजानी । |
− | + | फ़ीस, ड्रेस, कॉपियाँ, किताबें | |
− | + | आँगन में आवाज़ें अनगिन, | |
− | + | ज़रूरतों से बोझिल उगता | |
− | + | ज़रूरतों में ढल जाता दिन, | |
− | अस्पताल के किसी वार्ड सी | + | अस्पताल के किसी वार्ड - सी |
− | घर में सारी उम्र बितानी | + | घर में सारी उम्र बितानी । |
− | + | ढली दुपहरी सी आई हो | |
+ | दिन समेट टूटे पिछवाड़े, | ||
+ | छाया-सी बढ़ती उधड़न से | ||
+ | झाँक रहे हैं अँग उघाड़े, | ||
+ | तुझको और दिलासा देना | ||
+ | रिसते घावों कील चुभानी । | ||
+ | ये अभाव के दिन लावे - से | ||
+ | घुटते तेरे मेरे मन में, | ||
+ | अग्निगीत बनकर फैलेंगे | ||
+ | गाँवों - शहरों में, जन - जन में । | ||
+ | जिस दिन नया सूर्य जनमेगा | ||
+ | तेरे जूड़े कली लगानी । | ||
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17:28, 6 अक्टूबर 2023 के समय का अवतरण
मेरा वेतन ऐसे रानी
जैसे गरम तवे पे पानी ।
एक कसैली कैण्टीन से
थकन उदासी का नाता है,
वेतन के दिन - सा ही निश्चित
पहला बिल उसका आता है,
हर उधार की रीत उम्र - सी
जो पाई है सो लौटानी ।
दफ़्तर से घर तक हैं फैले
कर्ज़दाताओं के गर्म तकाजे,
ओछी फटी हुई चादर में
एक ढकूँ तो दूजी लाजे,
क़र्ज़ा लेकर क़र्ज़ चुकाना
अंगारों से आग भुजानी ।
फ़ीस, ड्रेस, कॉपियाँ, किताबें
आँगन में आवाज़ें अनगिन,
ज़रूरतों से बोझिल उगता
ज़रूरतों में ढल जाता दिन,
अस्पताल के किसी वार्ड - सी
घर में सारी उम्र बितानी ।
ढली दुपहरी सी आई हो
दिन समेट टूटे पिछवाड़े,
छाया-सी बढ़ती उधड़न से
झाँक रहे हैं अँग उघाड़े,
तुझको और दिलासा देना
रिसते घावों कील चुभानी ।
ये अभाव के दिन लावे - से
घुटते तेरे मेरे मन में,
अग्निगीत बनकर फैलेंगे
गाँवों - शहरों में, जन - जन में ।
जिस दिन नया सूर्य जनमेगा
तेरे जूड़े कली लगानी ।