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और उस पर हंसती विश्व मोहिनी ने उच्चारा : "नारायण ... नारायण ...।"
युनसिम ई की कविता में यह इसी तरह नहीं है, लेकिन उसके भाव को मैंने इस तरह से उभारा उनकी कविता से ही एक पदावली उधार लेते हुए कह सकते हैं ट्रांसलेशन इज रिजनरेटिंग अ पिरामिड "अधित्यका पर कुमारी कुमार” एक बहुत ही अद्भुत कविता है , जिसमेंकुमारी अनछुई लौटती है है। पवित्र घास,पत्तियां पत्तियाँ,हवासब कुछ स्पंदित स्पन्दित होता है और वापस अपने आसन में जड़ हो जाता हैउसके हाथ में बीज और बूटी रह जाते हैं। स्त्री विमर्श में देह की स्वतंत्रता पर यह अपने ढंग की विलक्षण कविता मुझे लगी और वह भी तब जब ग्रीक माइथॉलजी में आर्टेमिस आदि देवियों की भूमिका निश्चित सी हो! आर्टेमिस शुद्धता, शिकार और चंद्रमा चन्द्रमा की देवी थी, जिसे अक्सर उसके भरोसेमंद भरोसेमन्द धनुष और तीर और जंगल में भागने में सहायता के लिए एक छोटे अंगरखा के साथ चित्रित किया जाता था। उसका प्रथम गुण – क्योंकि उसने कभी शादी न करने की कसम क़सम खाई थी – को भावुक और उग्र एफ़्रोडाइट के प्रतिरूप में प्रस्तुत किया गया था। कुछ कहानियों में उसे थोड़ी बड़ी उम्र की जुड़वां जुड़वाँ बहन के रूप में दिखाया गया है, जिसने प्रसव में अपनी मां माँ की सहायता की और इस तरह प्रसव पीड़ा में महिलाओं की रक्षक और संरक्षक बन गई। "सोते हुए पुरुष को नापते मापना" – उनकी यह कविता दो अलग-अलग स्तरों पर रोमांचित करती है: एक: एक– स्त्री उस पुरुष की नींद में झाँकती है जो उसका शिकार करके सो गया है, है। पुरुष वहाँ से वापस नहीं लौट सकता:यह एक आदिम दिवास्वप्न है , जो इस तरह सच होता है (ऐसा होता है)! अपनी भविष्यवाणियों से घिरी महिलाउसकी निजता में ताक-झाँक करउसके बड़बड़ाने का मदिरा मशकीज़ा ( wineskin ) अपने लिए “काल्पनिक प्यास “टटोलने के निमित्त उलट देती है।उनके पिरामिड के त्रिकोण भेंटते - काटते उत्परिवर्तन का बिगुल कुछ इस तरह बजाते हैं के कि उनकी परतों में कायापलट की लहरियां लहरियाँ उठती - मचलती हैंबर्फ बर्फ़ की पंखुड़ियां पँखुड़ियां एक - एक करके खिलती हैं और उनके खिलने की चटक में टकराने से वजूद की कैफियत कैफ़ियत पैदा होती है जो उतने ही धीमे से मर जाती है“वहां “वहाँ और फिर शीतकालीन विषुव के निकट परले दर्जे का जश्न ’जश्न तजदीद तजदीद” शुरू हुआ”
— '''बालकीर्ति'''
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