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"गरीबों के लहू से जो महल अपने बनाता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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वही इस देश की मज़लूम जनता का विधाता है। | वही इस देश की मज़लूम जनता का विधाता है। | ||
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जहाँ पत्थर भी ईश्वर है जहाँ गइया भी माता है। | जहाँ पत्थर भी ईश्वर है जहाँ गइया भी माता है। | ||
− | गरजती है बहुत फिर प्यार की बरसात भी करती, | + | गरजती है बहुत फिर प्यार की बरसात भी करती, |
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− | पिघल जाते हैं पत्थर प्यार में | + | पिघल जाते हैं पत्थर प्यार में कहता है जग सारा, |
पिघलते पत्थरों पर क्यूँ जमाना तिलमिलाता है। | पिघलते पत्थरों पर क्यूँ जमाना तिलमिलाता है। | ||
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मैं तेरे प्यार का कंबल हमेशा साथ रखता हूँ, | मैं तेरे प्यार का कंबल हमेशा साथ रखता हूँ, | ||
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17:24, 24 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
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ग़रीबों के लहू से जो महल अपने बनाता है।
वही इस देश की मज़लूम जनता का विधाता है।
कहाँ से नफ़रतें आकर घुली हैं उन फ़िजाओं में,
जहाँ पत्थर भी ईश्वर है जहाँ गइया भी माता है।
गरजती है बहुत फिर प्यार की बरसात भी करती,
मेरा बदली के दिल से क्या पता कैसा ये नाता है।
पिघल जाते हैं पत्थर प्यार में कहता है जग सारा,
पिघलते पत्थरों पर क्यूँ जमाना तिलमिलाता है।
न मंदिर में न मस्जिद में न गुरुद्वारे न गिरिजा में,
दिलों में झाँकता है जो ख़ुदा को देख पाता है।
मैं तेरे प्यार का कंबल हमेशा साथ रखता हूँ,
भरोसा क्या है मौसम का बदल क्षण भर में जाता है।