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माये नी माये मैं इक शिकरा यार बनाया / शिव कुमार बटालवी
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7 मई
उस ए कि जुल्म कमाया
(मेरी आँखों
के पोपटों
में देर तक रोने की वजह से दर्द होने लगा है। उनमें आँसुओं की बाढ़ आ गई है। सारी रात मैं, बस, यही सोचता रहा कि मैंने ये अत्याचार आख़िर क्यों अपने ऊपर ले लिया)
सुबह सवेरे लै नी वटणा
अनिल जनविजय
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