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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार मुकुल
|संग्रह=सभ्‍यता और जीवन / कुमार मुकुल
}}
{{KKCatK​​avita}}<poem>KKPustak|चित्र= जानते हुए कि |नाम=कविता व्यक्तित्व चमकाने की चीज नहीं एक मुकम्मल बयान और शब्दों में आदमी होने की तमीज है जानना चाहोगे तुमकि कविता क्या है कैसे यह महबूबा के होठों से गुलमोहर की शाखों पर खिलती हुई सड़क पर बिखरे आदमी के खून तक का सफर पूरा तय करती है कविता रोटी की फसल पैदा कर सकती है यह व्यक्ति को सार्वजनिक करती है या सार्वजनिक को व्यक्त ? अपनी छोटी सी समझ से|रचनाकार=[[कुमार मुकुल]]हम हैं |प्रकाशक=प्रभाकर प्रकाशन, इसी से कविता है प्‍लट न.- 55, मेन मदर डेयरी रोड, पांडव नगर, ईस्‍ट दिल्‍ली - 110092यह हमारे होने का प्रमाण है |वर्ष=2024कविता मैं से |भाषा=हिन्दीतुम या वह होने की छटपटाहट है |विषय=कविताएँबतलाती है यह कि तटस्थता |शैली=--नपुंसकों की अक्षमता ढकने को |पृष्ठ=148एक सुंदर भावबोध है |ISBN=978-93-56825-04-8और समष्टि से संलग्नता |विविध=--उर्वर होने की शर्त }}* [[सबसे अच्‍छे खत / कुमार मुकुल]]यह वसंत से कोयल की कूक और बौरों की गंध * [[चांदनी का टीला / कुमार मुकुल]]संबंध साबित करती है यह बतलाती है कि कैसे शून्‍य में दागे गए चुंबनों के चिन्ह प्रिया के रुखसारों पर सिहरन पैदा करते हैंयह सिखलाती है कि नियॉन लाइट्स की रौशनी हमारे अंतर का अंधकार दूर नहीं कर सकती कि ध्वनि या प्रकाश के वेग से दौड़ें हम धरती लंबी नहीं होने को कि एकता मारे बेजान केचुओं कासमूह नहीं एक बंधी हुई मुठ्ठी है यह बंदूक की नली से भेड़िए और मेमने का फर्क करना सिखलाती है * [[कविता तय करती है कि कब / कुमार मुकुल]]चूल्हे में जलती लकड़ी को मशाल की शक्ल में थाम लिया जाए  या अन्य ढेर सारी गांठें जिन्हें कोई नहीं खोलता कविता खोलती है जहां कहीं भी गति है वहीं जीवन है और कविता भी।​​ <* [[पहाड़ /poem>कुमार मुकुल]]
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