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(यह रचना 'वाणी प्रकाशन' से 1994 में प्रकाशित उनकी पुस्तक 'भूल जाओ पुराने सपने' से है )

21:28, 26 सितम्बर 2024 के समय का अवतरण

आदरणीय,
अब तो आप
पूर्णतः मुक्त जन हो !
कम्प्लीट्ली लिबरेटेड...
जी हाँ कोई ससुरा
आपकी झाँट नहीं
उखाड़ सकता, जी हाँ !!
जी हाँ, आपके लिए
कोई भी करणीय-कृत्य
शेष नहीं बचा है
जी हाँ, आप तो अब
इतिहास-पुरुष हो
...
स्थित प्रज्ञ—
निर्लिप्त, निरंजन...
युगावतार !
जो कुछ भी होना था
सब हो चुके आप !
ओ मेरी माँ, ओ मेरे बाप !
आपकी कीर्ति-


(यह रचना 'वाणी प्रकाशन' से 1994 में प्रकाशित उनकी पुस्तक 'भूल जाओ पुराने सपने' से है )