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"दर्पण / सुभाष काक" के अवतरणों में अंतर

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दर्पण में कई पशु
 
दर्पण में कई पशु

00:38, 27 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण


दर्पण में कई पशु

अपने को पहचानते नहीं।

मानव पहचानते तो हैं

पर प्रत्येक असन्तुष्ट है

अपने रूप से।


दर्पण से पहले का क्षेत्र

भाव और भावना का लोक है

त्रिशंकु का।

रूप की विचित्रता से लज्जा निकलती है।


नदी का कांपता तल

और तलवार भी दर्पण हैं।

अस्तित्व मिटाकर ही तो

अपने को जाना जाता है।