भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नियति का पथिक / पूनम चौधरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूनम चौधरी }} {{KKCatKavita}} <poem> -0- </poem>' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
एक दिन,
 +
नियति ने खोल दिए अपने द्वार,
 +
और दे दी स्वतंत्रता
 +
हर कण को अपना पथ चुनने की।
  
 +
सूरज ने अपनी ऊष्मा को चुना
 +
धरती की ठिठकी साँसों में
 +
प्रकाश की किरणें बो दीं,
 +
बीजों की झुकी हथेलियों में
 +
आशा की नमी भर दी,
 +
पत्तों पर हरियाली की मुस्कान खिला दी,
 +
और हवाओं में
 +
एक नया जीवन गीत रचा।
 +
 +
चंद्रमा ने अपनी शीतलता ओढ़ी
 +
रात्रि की नीरव चादर पर
 +
कहानियों के मोती टाँक दिए,
 +
तारों की परछाइयों में
 +
अनकहे स्वप्नों को
 +
धीरे-धीरे पिरो दिया।
 +
 +
नदियों ने चुपचाप
 +
पत्थरों से संवाद किया —
 +
हर काँटे और सूखी टहनी को
 +
अपने प्रवाह में सहेज लिया,
 +
हर मार्ग को खोजते हुए
 +
प्यासे किनारों को
 +
अपने जल से छू लिया,
 +
और सागर तक
 +
अपनी यात्रा को अर्थ दे दिया।
 +
 +
हवा ने समेट ली सुगंधी फूलों की,
 +
और बहा दिया अदृश्य संगीत
 +
सृष्टि के कण-कण में,
 +
जिसे हर पत्ता
 +
अपने नृत्य में गुनगुनाता रहा।
 +
 +
मेघों ने वर्षा को चुना
 +
और
 +
घोल दी मधुरता,
 +
स्नेहिल बूँदों की
 +
धरती के तृषित अंक में।
 +
 +
जीवन की नमी से
 +
हरे हो गए मुरझाए स्वप्न।
 +
 +
किंतु प्रेम?
 +
प्रेम ने नहीं चुना कोई विकल्प —
 +
वह प्रतीक्षा करता रहा —
 +
कभी खिलते फूलों में,
 +
कभी बुझी लौ की राख में,
 +
कभी टूटते, लड़खड़ाते संकल्पों में,
 +
हृदय की गहराई में
 +
अपनी जगह बनाता रहा।
 +
 +
प्रेम ने जाना
 +
अपना धर्म,
 +
हृदय की अतल गहराइयों को
 +
बिना आहट छू सकता है,
 +
मुस्कान में खिल सकता है,
 +
अश्रु में भी झिलमिला सकता है।
 +
 +
और इस प्रकार,
 +
प्रेम ने पा लिया पूर्णत्व —
 +
जहाँ हर साँस, हर स्पर्श
 +
उसकी कहानी कहने लगा।
 +
 +
अब —
 +
सूरज की ऊष्मा में,
 +
चंद्रमा की शीतलता में,
 +
नदियों की कलकल में,
 +
हवा के स्पंदन में,
 +
वर्षा की मिट्टी में —
 +
प्रेम की एक कोमल रेखा
 +
नियति के पथिक की तरह
 +
बहती रहती है —
 +
हम सबकी ओर।
  
 
-0-
 
-0-
 
</poem>
 
</poem>

12:50, 16 जून 2025 के समय का अवतरण

एक दिन,
नियति ने खोल दिए अपने द्वार,
 और दे दी स्वतंत्रता
हर कण को अपना पथ चुनने की।

सूरज ने अपनी ऊष्मा को चुना
धरती की ठिठकी साँसों में
प्रकाश की किरणें बो दीं,
बीजों की झुकी हथेलियों में
आशा की नमी भर दी,
पत्तों पर हरियाली की मुस्कान खिला दी,
और हवाओं में
एक नया जीवन गीत रचा।

चंद्रमा ने अपनी शीतलता ओढ़ी
रात्रि की नीरव चादर पर
कहानियों के मोती टाँक दिए,
तारों की परछाइयों में
अनकहे स्वप्नों को
धीरे-धीरे पिरो दिया।

नदियों ने चुपचाप
पत्थरों से संवाद किया —
हर काँटे और सूखी टहनी को
अपने प्रवाह में सहेज लिया,
हर मार्ग को खोजते हुए
प्यासे किनारों को
अपने जल से छू लिया,
और सागर तक
अपनी यात्रा को अर्थ दे दिया।

हवा ने समेट ली सुगंधी फूलों की,
और बहा दिया अदृश्य संगीत
सृष्टि के कण-कण में,
जिसे हर पत्ता
अपने नृत्य में गुनगुनाता रहा।

मेघों ने वर्षा को चुना
और
घोल दी मधुरता,
स्नेहिल बूँदों की
धरती के तृषित अंक में।

जीवन की नमी से
हरे हो गए मुरझाए स्वप्न।

किंतु प्रेम?
प्रेम ने नहीं चुना कोई विकल्प —
वह प्रतीक्षा करता रहा —
कभी खिलते फूलों में,
कभी बुझी लौ की राख में,
कभी टूटते, लड़खड़ाते संकल्पों में,
हृदय की गहराई में
अपनी जगह बनाता रहा।

प्रेम ने जाना
अपना धर्म,
हृदय की अतल गहराइयों को
बिना आहट छू सकता है,
मुस्कान में खिल सकता है,
अश्रु में भी झिलमिला सकता है।

और इस प्रकार,
प्रेम ने पा लिया पूर्णत्व —
जहाँ हर साँस, हर स्पर्श
उसकी कहानी कहने लगा।

अब —
सूरज की ऊष्मा में,
चंद्रमा की शीतलता में,
नदियों की कलकल में,
हवा के स्पंदन में,
वर्षा की मिट्टी में —
प्रेम की एक कोमल रेखा
नियति के पथिक की तरह
बहती रहती है —
हम सबकी ओर।

-0-