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प्रेम एक बीज हैगिरता है चुपचापमन की गीली मिट्टी में,बिना शोर, बिना घोषणा।ना उसे रोशनी चाहिए तुरंत,ना ही बारिश की बौछार,वो अँधेरे की गहराइयों मेंअपना स्वर गढ़ता है।वो टूटता है भीतर—बिखरता है, सड़ता है,तभी अंकुर फूटता है—प्रेम यूँ ही फलता है।ना हर बीज पेड़ बनता है,ना हर प्रेम अमर होता है,पर जो धरती समझ बन जाए,वहाँ प्रेम, एक वटवृक्ष भी होता है।उसे समय चाहिए—तुम्हारे धैर्य-सी धूप,तुम्हारी नम आँखों-सी नमी,और भरोसे-सी चुप्पी।प्रेम एक बीज हैजिसे बो दिया तोवो तुम्हारे भीतर जड़ें फैला लेगाताकि जब तुम हिलो,तो तुम्हें याद रहेकहीं कोई तुम्हारे भीतर जी रहा है।-0-5-काई और काँच / -भावना सक्सैना। मेरी खिड़की का काँचहर सुबह पीता है धूप,करता है रोशन कमरे कोधूल सबसे पहले उसी पर चढ़ती है।पिछली दीवार पर चिपकी है काईन हिलती, न झुकतीहर मौसम में हरी दिखती है। पानियों की सभा मेंझीलें अक्सरमौन रहती हैं,पर पहाड़ उतारते हैं स्वयं कोझीलों की गहराई में। कुछ दीप ऐसे होते हैंजो रोशनी नहीं देते,बस तेल की गंध सेअपनी उपस्थिति जताते हैं। कुछ पाँव — चुपचाप मिट्टी ओढ़ेहर दिन एक नई राह गढ़ते हैं,और कुछ पदचिह्न —हर शाम वही रास्ता दुहराते हैंजिसे सुबह किसी और ने चलकर छोड़ा था। पेड़ों की छाया अक्सरचर्चा में रहती हैशाखों से ज़्यादा,लेकिन फलहमेशा वहाँ गिरते हैं,जहाँ जड़ें चुपचाप गहरी हुई हों। कुछ काम धूप की तरह होते हैं —न रोशनी माँगते हैं, न गवाह।बस धीरे-धीरेसारे मौसम बदल देते हैं।-0-
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