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कैसे पहचानेगा वह
मेरे भीतर के घुमावदार रास्तों मेंअनादि समयसिकुड़कर बैठा हैनिस्संग गड़रिये की तरह ।दिखाई तो नहीं देतालेकिन उसकी आँखों में हीकहीं होगीतरन्नुमों वाली रातनर्तकियों काझाला के बीचद्रुत थिरकनाऔर जलसाघर केठीक सामनेअसंख्य नदियों काएक उफनता मुहाना।कोई यक़ीन करे, न करेमैं जानता हूँयह सच है । हज़ार बरस सेमैं चलता तो रहालेकिन देखोमेरे पाँव एड़ियाँऔर लहूलुहान तलवेअबजाने कहाँग़ुम हो गए ! कल तकजहाँअरबों मीलफैले रास्ते थेवहाँअब सिर्फ़ शून्य हैसृष्टिकेआदिरहस्य की तरह जिसमें प्रतिबिम्बित हो रहामेरा खण्डित क़दऔरज़ख़्म हुईअतलान्त इच्छाएँ ! देखो,मेरे पास जहाँ आँखें थींवहाँअब एकज्वालामुखी प्रदेश है !सुनो,यही है मेरा अन्त रोशनी के दरवाज़े सेफ़कत गज़ भर पहले ! —— २२ अक्तूबर १९८४ट्रॉंय, न्यूयार्क
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