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"छटपटाता हुआ धरती पे पड़ा हूँ लोगो / ज्ञान प्रकाश विवेक" के अवतरणों में अंतर
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(कोई अंतर नहीं)
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16:43, 7 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण
छटपटाता हुआ धरती पे पड़ा हूँ लोगो
अपनी औक़ात से कुछ ऊँचा उड़ा हूँ लोगो
कोई ग़फ़लत से मुझे ऊँचा समझ ले शायद
अजनबी शहर में दो दिन से खड़ा हूँ लोगो
मुझको ये ज़ीस्त भी लगती है अँगूठी जैसी
दर्द के नग की तरह इसमें जड़ा हूँ लोगो
आश्वासन का कभी इसमें भरा था पानी
अब तो मैं ख़ाली बहानों का घड़ा हूँ लोगो
कल जहाँ लाश जलाई गई नैतिकता की
उस समाधि पे दीया ले के खड़ा हूँ लोगो.