|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल
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<Poem>
तुम घटाना मत
अपना प्रेम
तब भी नहीं
जब लोग करने लगें
उसका हिसाब ।
ठगा हुआ पाओ
अपने को
अकेला
एक दिन--
तब भी नहीं ।
मत घटाना
अपना प्रेम ।
बंद कर देगी तुमासे बोलना
नहीं तो
धरती यह चिड़िया यह घास यह--
मुँह फेर लेगा आसमान ।
नहीं, तुम घटाना नहीं
अपना प्रेम ।
</poem>