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ऊहापोह / जयप्रकाश मानस
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उफनती
उफ़नती
नदी की शक्ल में
मसकता है लावा
जैसे छिटककर कोई बीज पेड़ से
विवेक
गम
गुम
हो जाता है
जैसे अनाड़ी के हाथ से
अनिल जनविजय
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