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"मैं बनी मधुमास आली / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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मैं बनी मधुमास आली!<br><br>
 
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बरस सुधि के इन्दु से छिटकी पुलक की चांदनी<br>
 
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उमड़, आई री, दृगों में <br>
 
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जाग सुक-पिक ने अचानक मदिर पन्चम तान ली;<br>
 
जाग सुक-पिक ने अचानक मदिर पन्चम तान ली;<br>
 
बह चली निःश्वास की मृदु<br>
 
बह चली निःश्वास की मृदु<br>

11:26, 13 मई 2007 का अवतरण

लेखिका: महादेवी वर्मा

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मैं बनी मधुमास आली!

आज मधुर विषाद की घिर करुण आई यामिनी
बरस सुधि के इन्दु से छिटकी पुलक की चांदनी
उमड़, आई री, दृगों में
सजनि, कालिन्दी निराली!

रजत स्वप्नों में उदित अपलक विरल तारावली,
जाग सुक-पिक ने अचानक मदिर पन्चम तान ली;
बह चली निःश्वास की मृदु
वात मलय-निकुन्ज वाली!

सजल रोमों में बिछी है पांवड़े मधुस्नात से,
आज जीवन के निमिष भी दूत हैं अज्ञात से
क्या न अब प्रिय की बजेगी
मुरली मधुराग वाली?

मैं बनी मधुमास आली!