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"काँच के परदे हैं / राजकुमार कुंभज" के अवतरणों में अंतर

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21:48, 13 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

काँच के परदे हैं
आवाज़ों का नाटक नहीं है
चम्पी करवा लो, मन बहल जाएगा
आजकल की दुनिया का यही नया विचार है
गुमाश्तों और कारिन्दों की एक बड़ी भीड़ है
जो यहाँ-वहाँ से ढूँढ़ रही है पत्थर
मगर वह एक पत्थर है कि मिलता नहीं
जो पहुँचे निशाने तक।