भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चेतक की वीरता / श्यामनारायण पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
राणाप्रताप के घोड़े से <br>
 
राणाप्रताप के घोड़े से <br>
 
पड़ गया हवा का पाला था<br><br>
 
पड़ गया हवा का पाला था<br><br>
 +
 +
जो तनिक हवा से बाग हिली
 +
 +
लेकर सवार उड जाता था
 +
 +
राणा की पुतली फिरी नहीं
 +
 +
तब तक चेतक मुड जाता था
 +
 +
  
 
गिरता न कभी चेतक तन पर<br>
 
गिरता न कभी चेतक तन पर<br>
पंक्ति 13: पंक्ति 23:
 
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर<br>
 
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर<br>
 
वह आसमान का घोड़ा था<br><br>
 
वह आसमान का घोड़ा था<br><br>
 +
 +
था यहीं रहा अब यहाँ नहीं
 +
 +
वह वहीं रहा था यहाँ नहीं
 +
 +
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
 +
 +
किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं
 +
 +
निर्भीक गया वह ढालों में
 +
 +
सरपट दौडा करबालों में
 +
 +
फँस गया शत्रु की चालों में
 +
 +
*
 +
 +
  
 
बढते नद सा वह लहर गया<br>
 
बढते नद सा वह लहर गया<br>
पंक्ति 20: पंक्ति 48:
  
 
भाला गिर गया गिरा निशंग<br>
 
भाला गिर गया गिरा निशंग<br>
 +
हय टापों से खन गया अंग
 +
 
बैरी समाज रह गया दंग <br>
 
बैरी समाज रह गया दंग <br>
 
घोड़े का ऐसा देख रंग<br><br>
 
घोड़े का ऐसा देख रंग<br><br>

12:23, 2 अक्टूबर 2008 का अवतरण

रणबीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणाप्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था

जो तनिक हवा से बाग हिली

लेकर सवार उड जाता था

राणा की पुतली फिरी नहीं

तब तक चेतक मुड जाता था


गिरता न कभी चेतक तन पर
राणाप्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर
वह आसमान का घोड़ा था

था यहीं रहा अब यहाँ नहीं

वह वहीं रहा था यहाँ नहीं

थी जगह न कोई जहाँ नहीं

किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं

निर्भीक गया वह ढालों में

सरपट दौडा करबालों में

फँस गया शत्रु की चालों में


बढते नद सा वह लहर गया
फिर गया गया फिर ठहर गया
बिकराल बज्रमय बादल सा
अरि की सेना पर घहर गया ।

भाला गिर गया गिरा निशंग
हय टापों से खन गया अंग

बैरी समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग