भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डूब रहे हैं / अग्निशेखर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अग्निशेखर |संग्रह=मुझसे छीन ली गई मेरी नदी / अग्...)
(कोई अंतर नहीं)

04:06, 18 जनवरी 2009 का अवतरण

धँसते जा रहे हैं हम
पहाड़ों से उतरकर
दलदल में
किसे आवाज़ दें रात के इस पहर में
दूर-दूर तक पानी पर
झूल रहा है
आधे कोस का चांद
सन्नाटे में डूब रहे हैं हम