"दागो, भागो / शैल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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00:55, 19 जनवरी 2009 का अवतरण
दुश्मन
हथियार मांग लाया दान में
आ गया मैदान में
हाथ बढ़ाकर दोस्ती का
छेड़ दी लड़ाई
अकारण ही भारत पर
कर दी चढ़ाई
त देश के बूढ़े और जवान
पंजबी, मरहठे, पठान
आ गए होश में
तो हम भी
भनभनाने लगे जोश में
सेना मे भरती होने का
हो आया चाव
आव देखा न ताव
और पत्नी के सामने
रख दिया प्रस्ताव
कहने लगी - "क्या बोलते हो
अपने को सैनिक से तौलते हो
अरे, बहादुरी ही दिखाना था
तो शादी क्यों की
मेरी बरबदी क्यों की
क्या घर में लड़ते-लड़ते
जी नहीं भरा
जो इरादा है
बाहर लड़ने का
क्या फायदा
बी.ए. तक पढ़ने का
लड़ाई में वो जाते हैं
जिनका कोई नहीं होता
चले भी गए
तो उनके लिए कोई नहीं रोता
जिनको लड़ना है लड़े
हमें नहीं लड़ना
अच्छा नहीं है
किसी के बीच में पड़ना।"
मगर हमारा जोश
जोर मार रहा था
कर्तव्य पुकार रहा था
हल बोले- "क्या कहती हो
देश पर संकट है
कहाँ रहती हो
दुश्मन
बारूद उगल रहा है
हिमालय जल रहा है
देश पर बिजली कौंध रही है
हैवनियत
इंसानियत को रौंद रही है
शत्रु बात-बात पर
अड़े जाता है
देश पर अपने चढे जाता है
लगातार बढ़े जाता है
बावरी!
यहाँ तक आ पहुँचा तो क्या करोगी
फिर तो लड़ोगी
उसे वही रोकना अच्छा है
देखती नहीं
जाग गया देश का बच्चा-बच्चा है।"
वे बोली-"जानती हूँ
मगर तुम बच्चे नहीं हो
तुम्हारे कन्धों ओअर ज़िम्मेदारी है
पीछे पांच बच्चे हैं
एक नारी है
घर मे लड़ लेते हो
तो क्या ये समझते हो
कि फौज से लड़ना आसान है
इसका भी कुछ भान है
मुंह चलाने
और बन्दूक चलाने में
अंतर है ज़मीन-आसमान का
फिर कुछ तो खयाल करो
आने वाले मेहमान का
दुश्मन पीछे लग गया
तो भागते बनेगा
बन्दूक चलाई है कभी
गोलियाँ दागते बनेगा?
बन्दूक-बन्दूक है
गुलेल नहीं है
लड़ाई, लड़ाई है
खेल नहीं है।"
हमसे न रहा गया
कह दिया जो भी कहा गया-
"मेरे पौरूष पर शंका करती हो
मुझे क्या समझ रक्खा है
लोहे का चना हूँ
तुमने समझा, मुन्नका है
कि हर कोई चबा ले
आसानी से दबा ले
जानती हो
स्कूल मे एन.सी.सी. ली थी
और फायरिंग भी की थी
निशानेबाज़ी में इनाम पाया था
पेपरों मे नाम आया था।"