|रचनाकार=अनूप सेठी
}}
<Poem>
एक साथ कई स्त्रियाँ बस में चढ़ती हैं
एक हाथ से सँतुलन बनाए
बिना धक्का खाए घर पहुंचना है उन्हें
बंद बद घरों में बत्तियां जले रहने तक डटे रहना है अंधेरे अँधेरे में और सपने में खटना है
नल के साथ जगना है हर जगह खुद को भरना है
चल पड़ना है एक हाथ से संतुलन सUतुलन बनाए
रोज़ सुबह वीटी चर्चगेट पर ढेर गाड़ियां खाली होती हैं
रोज़ शाम को वहीं से लद कर जाती हैं।