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हाथ कहाँ हैं,वंचक हाथों के चक्के में<br>
 
हाथ कहाँ हैं,वंचक हाथों के चक्के में<br>
बंधक हैं,बँधुए कहलाते हैं।धरती है<br>
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बंधक हैं,बँधुए कहलाते हैं।धरती है<br>
 
निर्मम,पेट पले कैसे।इस उस मुखड़े<br>
 
निर्मम,पेट पले कैसे।इस उस मुखड़े<br>
 
की सुननी पड़ जाती है,धौंसौं के धक्के में<br>
 
की सुननी पड़ जाती है,धौंसौं के धक्के में<br>
 
कौन जिए।जिन साँसों में आया करती है<br>
 
कौन जिए।जिन साँसों में आया करती है<br>
 
भाषा,किस को चिन्ता है उसके दुखड़ों की।
 
भाषा,किस को चिन्ता है उसके दुखड़ों की।

21:15, 26 अप्रैल 2007 का अवतरण

त्रिलोचन शास्‍त्री की रचनाएँ


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हाथों के दिन आयेंगे।कब आयेंगे,
यह तो कोई नहीं बताता।करने वाले
जहाँ कहीं भी देखा अब तक डरने वाले
मिलते हैं। सुख की रोटी कब खायेंगे,
सुख से कब सोयेंगे, उस को कब पायेंगे,
जिसको पाने की इच्छा है।हरने वाले,
हर हर कर अपना-अपना घर भरने वाले,
कहाँ नहीं हैं। हाथ कहाँ से क्या लायेंगे।

हाथ कहाँ हैं,वंचक हाथों के चक्के में
बंधक हैं,बँधुए कहलाते हैं।धरती है
निर्मम,पेट पले कैसे।इस उस मुखड़े
की सुननी पड़ जाती है,धौंसौं के धक्के में
कौन जिए।जिन साँसों में आया करती है
भाषा,किस को चिन्ता है उसके दुखड़ों की।