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सहेली सुनु सोहिलो रे / तुलसीदास
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|रचनाकार=तुलसीदास
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'''राग जैतश्री'''
सिव-बिरञ्चि-मुनि-सिद्ध प्रसंसत, बड़े भूप के भाग |
तुलसिदास प्रभु सोहिलो गावत उमगि-उमगि अनुराग ||
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अनिल जनविजय
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