भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भोर भयो जागहु, रघुनन्दन / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
अनुज सखा सब बोलनि आये | बन्दिन्ह अति पुनीत गुन गाये ||
 
अनुज सखा सब बोलनि आये | बन्दिन्ह अति पुनीत गुन गाये ||
 
मनभावतो कलेऊ कीजै | तुलसिदास कहँ जूठनि दीजै ||
 
मनभावतो कलेऊ कीजै | तुलसिदास कहँ जूठनि दीजै ||
</poem
+
</poem>

21:03, 27 जनवरी 2009 का अवतरण

राग बिभास

भोर भयो जागहु, रघुनन्दन | गत-व्यलीक भगतनि उर-चन्दन ||
ससि करहीन, छीन दुति तारे | तमचुर मुखर, सुनहु मेरे प्यारे ||
बिकसित कञ्ज, कुमुद बिलखाने | लै पराग रस मधुप उड़ाने ||
अनुज सखा सब बोलनि आये | बन्दिन्ह अति पुनीत गुन गाये ||
मनभावतो कलेऊ कीजै | तुलसिदास कहँ जूठनि दीजै ||