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माचिस की डिबिया / सरोज परमार
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08:44, 28 जनवरी 2009
घासलेट के कुप्पे से सट कर
पी लिया होगा अंधेरा
कुछ तीलियाँ गिराने के एवज
मेम
में
खाया होगा तमाचा मुन्नी ने
कुछ फुस्स हुई कुछ सील गई पड़ी-गली
पल्लू को छू कर
तन्दूरी चिकन बनाया होगा
किसी भरी
-
पूरी लड़की को.
</poem>
अनिल जनविजय
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