भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बच्चे एक दिन / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 23: पंक्ति 23:
  
  
आकाश को पुरानी चाँदनी की तरह  
+
आकाश को पुरानी चांदनी की तरह  
  
 
अपने कंधों पर ढोकर  
 
अपने कंधों पर ढोकर  

18:03, 17 अप्रैल 2008 का अवतरण


बच्चे

अंतरिक्ष में

एक दिन निकलेंगे

अपनी धुन में,

और बीनकर ले आयेंगे

अधखाये फलों और

रकम-रकम के पत्थरों की तरह

कुछ तारों को ।


आकाश को पुरानी चांदनी की तरह

अपने कंधों पर ढोकर

अपने खेल के लिए

उठा ले आयेंगे बच्चे

एक दिन ।


बच्चे एक दिन यमलोक पर धावा बोलेंगे

और छुड़ा ले आयेंगे

सब पुरखों को

वापस पृथ्वी पर,

और फिर आँखें फाड़े

विस्मय से सुनते रहेंगे

एक अनन्त कहानी

सदियों तक ।


बच्चे एक दिन......


(रचनाकालः1986)