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"पलाश-वन / केशव" के अवतरणों में अंतर

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यह धुन्ध
ले जाएगी हमें दूर
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नहीं
बहुत
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कोई दीवार
      दूर
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कि छू न सकें
कुछ मत कहो
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एक-दूसरे को
रहने दो
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    आर-पार
तमाम दुनिया को  
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एक विन्दु की भांति स्थिर
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अपने-अपने
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अकेलेपन को लाँघ
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चल सकते हैं
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एक-दूसरे के
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    अकेलेपन में
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जैसे पार कर लेती है
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    गिलहरी
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महीन तार पर
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दो छोरों के बीच की दूरी 
  
बहने दो
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एक-दूसरे के बीच
इस संगीत में  
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स्मृति है
डूबी हुई नदी को  
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कबूतर की तरह फड़फ़ड़ाती
क्या पता
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और है इच्छा
उग आए कौन सा पल
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कंगूरों पर
स्पर्शों को
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धूप की तरह
अनकहा कहने दो
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अलसाती
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ख़िड़की खोलकर
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हम झाँकते हैं जंगल में  
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और जंगल की फुनगियों पर
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टँके आसमान को  
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पर समूचा विस्तार
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सिमटकर
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भीतर कहीं
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भोर की घण्टियों की तरह
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टुनटुनाता है
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पाँखुरी-पाँखुरी
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बन जाती है तब
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घाट में पगलाई
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    पुकार
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और धुन्ध
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अचानक
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एक सुलगते हुए
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पलाश-वन में
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तब्दील हो जाती है
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00:55, 4 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

यह धुन्ध
नहीं
कोई दीवार
कि छू न सकें
एक-दूसरे को
     आर-पार
        
अपने-अपने
अकेलेपन को लाँघ
चल सकते हैं
एक-दूसरे के
    अकेलेपन में
जैसे पार कर लेती है
    गिलहरी
महीन तार पर
दो छोरों के बीच की दूरी

एक-दूसरे के बीच
स्मृति है
कबूतर की तरह फड़फ़ड़ाती
और है इच्छा
कंगूरों पर
धूप की तरह
अलसाती
ख़िड़की खोलकर
हम झाँकते हैं जंगल में
और जंगल की फुनगियों पर
टँके आसमान को
पर समूचा विस्तार
सिमटकर
भीतर कहीं
भोर की घण्टियों की तरह
टुनटुनाता है

पाँखुरी-पाँखुरी
बन जाती है तब
घाट में पगलाई
     पुकार
और धुन्ध
अचानक
एक सुलगते हुए
पलाश-वन में
तब्दील हो जाती है