भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक अहम बात / लीलाधर जगूड़ी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर जगूड़ी |संग्रह = घबराये हुए शब्द / लीलाधर जगूड...)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
<Poem>
 
<Poem>
 
कपड़े की तरह निचोड़े हुए फटकारे हुए वर्तमान को
 
कपड़े की तरह निचोड़े हुए फटकारे हुए वर्तमान को
भविष्य से भिगोती है बूंड-बूंद रिसती हुई काली रात
+
भविष्य से भिगोती है बूंद-बूंद रिसती हुई काली रात
  
 
अभी इस बाग़ीचे का वह हिस्सा भी डूब जाएगा
 
अभी इस बाग़ीचे का वह हिस्सा भी डूब जाएगा

02:30, 5 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

कपड़े की तरह निचोड़े हुए फटकारे हुए वर्तमान को
भविष्य से भिगोती है बूंद-बूंद रिसती हुई काली रात

अभी इस बाग़ीचे का वह हिस्सा भी डूब जाएगा
जिसमें सबसे ज़्यादा पराग होगा कल
सबसे ज़्यादा मीठे फल होंगे
और उनसे भी कोमल और शुद्ध होगी हवा

ख़ुशी कई बार आएगी ऎसे कि जैसे जेब में हो
जब चाहें छू लें, देख लें और खर्च कर डालें
मगर बस उतनी देर जितने में तितली
एक फूल पर बैठे और उड़ जाए
पर चाहे जितनी देर को हो ख़ुशी फिर भी एक अहम बात है।