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"नैतिक प्रश्न / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

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आज से पहले मैंने मित्र को कभी
 
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असमंजस में नहीं देखा
 
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उसने किसी को कभी कुछ पूछने की
 
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मोहलत भी नहीं दी
 
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क्योंकि वह जो भी कर रहा था वह
 
क्योंकि वह जो भी कर रहा था वह
 
 
सत्य के पक्ष में
 
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ऎतिहासिक दायित्व का विनम्र
 
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निर्वाह था
 
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लेकिन आज बरसात की इस शाम को
 
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फुटपाथ पर पहली बार उसे ठिठकते
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हिचकते देखा
 
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हाथ में गर्म भुट्टा पकड़े अंगीठी पर आँखें
 
हाथ में गर्म भुट्टा पकड़े अंगीठी पर आँखें
 
 
गड़ाए वह बोला--लगता है मसान के
 
गड़ाए वह बोला--लगता है मसान के
 
 
कोयले पर पका है
 
कोयले पर पका है
 
 
खाना ठीक होगा ?
 
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12:17, 5 फ़रवरी 2009 का अवतरण

आज से पहले मैंने मित्र को कभी
असमंजस में नहीं देखा
उसने किसी को कभी कुछ पूछने की
मोहलत भी नहीं दी
क्योंकि वह जो भी कर रहा था वह
सत्य के पक्ष में
ऎतिहासिक दायित्व का विनम्र
निर्वाह था

लेकिन आज बरसात की इस शाम को
फुटपाथ पर पहली बार उसे ठिठकते
हिचकते देखा
हाथ में गर्म भुट्टा पकड़े अंगीठी पर आँखें
गड़ाए वह बोला--लगता है मसान के
कोयले पर पका है
खाना ठीक होगा ?