भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वक़्त रहते / प्रफुल्ल कुमार परवेज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रफुल्ल कुमार परवेज़ |संग्रह=संसार की धूप / प्र...) |
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
उस जेब में एक पता था | उस जेब में एक पता था | ||
एक टेलिफ़ोन नंबर | एक टेलिफ़ोन नंबर | ||
− | + | ||
स्टेशन के टेलिफ़ोन पर आया जवाब | स्टेशन के टेलिफ़ोन पर आया जवाब | ||
मिल के ज़रूर जाना भाई वापसी से पहले | मिल के ज़रूर जाना भाई वापसी से पहले | ||
− | वर्ना नाराज़ होंगे | + | वर्ना नाराज़ होंगे ही हम |
− | अचानक याद | + | अचानक याद आई उसे कोठे की अदा |
अगली ही गाड़ी से लौटते हुए | अगली ही गाड़ी से लौटते हुए | ||
उसने मनाया शुक्र | उसने मनाया शुक्र | ||
अच्छा रहा | अच्छा रहा | ||
− | स्टेशन से | + | स्टेशन से ही फ़ोन किया |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
</poem> | </poem> |
21:53, 8 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
पहली बार
शहर जाते हुए
उसकी स्मृति में एक निमंत्रण था
बार-बार
जिस जेब में जाता था उसका हाथ
उस जेब में एक पता था
एक टेलिफ़ोन नंबर
स्टेशन के टेलिफ़ोन पर आया जवाब
मिल के ज़रूर जाना भाई वापसी से पहले
वर्ना नाराज़ होंगे ही हम
अचानक याद आई उसे कोठे की अदा
अगली ही गाड़ी से लौटते हुए
उसने मनाया शुक्र
अच्छा रहा
स्टेशन से ही फ़ोन किया