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इस विशाल तंत्र का।
 
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01:43, 25 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

1

संबंधों के झूलते पुल पर
हाथों में हाथ थाम
पार कर जाते हैं हम
जीवन की गहरी नदी
और तेज बहता समय।

2

वह आदमी नहीं हैं
व्यवस्था के वाहक हैं
नाहक है मेरे पिता, मेरे भाई ...

हर व्यक्ति पुर्जा है
इस विशाल तंत्र का
पहुँचाता है मुझ तक
कोई न कोई मंत्र
इस विशाल तंत्र का।