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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''अब देखिये न मेरी कारगुज़ारी<br>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''कोई हँस रहा है कोई रो रहा है<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अज्ञेय]]  
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अकबर इलाहाबादी]]  
 
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अब देखिये न मेरी कारगुज़ारी
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कोई हँस रहा है कोई रो रहा है
कि मैं मँगनी के घोड़े पर
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कोई पा रहा है कोई खो रहा है
सवारी पर
+
 
ठाकुर साहब के लिए उन की रियाया से लगान
+
कोई ताक में है किसी को है ग़फ़्लत
और सेठ साहब के लिए पंसार-हट्टे की हर दुकान
+
कोई जागता है कोई सो रहा है
से किराया
+
 
वसूल कर लाया हूँ ।
+
कहीँ नाउमीदी ने बिजली गिराई
थैली वाले को थैली
+
कोई बीज उम्मीद के बो रहा है
तोड़े वाले को तोड़ा
+
 
-और घोड़े वाले को घोड़ा
+
इसी सोच में मैं तो रहता हूँ 'अकबर'
सब को सब का लौटा दिया
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यह क्या हो रहा है यह क्यों हो रहा है
अब मेरे पास यह घमंड है
+
 
कि सारा समाज मेरा एहसानमन्द है
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'''शब्दार्थ :
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ग़फ़्लत=भूल 
  
 
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03:51, 4 मार्च 2009 का अवतरण

 सप्ताह की कविता

  शीर्षक: कोई हँस रहा है कोई रो रहा है
  रचनाकार: अकबर इलाहाबादी

कोई हँस रहा है कोई रो रहा है
कोई पा रहा है कोई खो रहा है

कोई ताक में है किसी को है ग़फ़्लत
कोई जागता है कोई सो रहा है

कहीँ नाउमीदी ने बिजली गिराई
कोई बीज उम्मीद के बो रहा है

इसी सोच में मैं तो रहता हूँ 'अकबर'
यह क्या हो रहा है यह क्यों हो रहा है

'''शब्दार्थ :
ग़फ़्लत=भूल