"जवाब देना है / वेणु गोपाल" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वेणु गोपाल |संग्रह=चट्टानों का जलगीत / वेणु गोपा...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:03, 26 मार्च 2009 के समय का अवतरण
जवाब देना है
किसी ऎरे-गैरे को नहीं
बल्कि मुझे समन्दर को जवाब देना है।
जिस धरती के टुकड़े पर खड़ा हू`ं इस वक़्त
उसे ही
दरवाज़े की तरह खोलकर
झाँकता हूँ- बाहर भी धरती ही है।
'जमा-पूंजी कितनी है?' ख़ुद से पूछता हूँ
और गुल्लक फोड़कर
वे सारे खनखनाते दिन निकाल लेता हूँ
जो
नदियों ने दिए थे। समन्दर के लिए।
वे
सारे के सारे दिन
रंगीन पारदर्शियों की तरह हैं
जिन्हें
धरती के परदे पर
प्रोजेक्ट करता हूँ
तो दिखाई देती है
अपनी ही टुकड़ा-टुकड़ा ज़िम्मेदारियों से
बनी एक टुकड़ा-टुकड़ा ज़िन्दगी
दिखती है
बिस्तर से दूर नींद
आती हुई
आँखों से दूर पलकें
मुंदती हुईं
पाँवों से दूर यात्राएँ
सम्पन्न होती हुईं
और होठों से दूर उच्चारण
शब्दों से जुड़ते हुए
कुल मिलाकर
एक कटी-फटी क़िताब की
पचास-साठ पन्नों वाली कथा-हलचल।
इसी के सहारे लिखना है
मुझे अपना जवाब।
देना है जिसे समन्दर को-
और समन्दर
बेताब होगा।
ज़रूर इन्तज़ार कर रहा होगा।
मेरा।
रचनाकाल : 20.05.1978