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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''रोटी और संसद <br>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''अंजन की सीटी में म्हारो मन डोले <br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[धूमिल]]  
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[राजस्थानी लोकगीत]]  
 
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एक आदमी
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अंजन की सीटी में म्हारो मन डोले
रोटी बेलता है
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चला चला रे डिलैवर गाड़ी हौले हौले ।।
एक आदमी रोटी खाता है
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एक तीसरा आदमी भी है
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जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
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वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
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मैं पूछता हूं--
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'यह तीसरा आदमी कौन है ?'
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मेरे देश की संसद मौन है।
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बीजळी को पंखो चाले, गूंज रयो जण भोरो
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बैठी रेल में गाबा लाग्यो वो जाटां को छोरो ।।
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चला चला रे ।।
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डूंगर भागे, नंदी भागे और भागे खेत
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ढांडा की तो टोली भागे, उड़े रेत ही रेत ।।
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चला चला रे ।।
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बड़ी जोर को चाले अंजन, देवे ज़ोर की सीटी
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डब्बा डब्बा घूम रयो टोप वारो टी टी ।।
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चला चला रे ।।
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जयपुर से जद गाड़ी चाली गाड़ी चाली मैं बैठी थी सूधी
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असी जोर को धक्का लाग्यो जद मैं पड़ गयी उँधी ।।
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चला चला रे ।।<br><br>
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'''शब्दार्थ:'''
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डलेवर= ड्राईवर
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गाबा= गाने लगना
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डूंगर= पहाड़
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नंदी= नदी
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ढांडा= जानवर
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जद= जब (जदी, जर और जण भी कहा जाता है)
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असी= ऐसा, इतना
  
 
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00:20, 2 अप्रैल 2009 का अवतरण

 सप्ताह की कविता

  शीर्षक: अंजन की सीटी में म्हारो मन डोले
  रचनाकार: राजस्थानी लोकगीत

अंजन की सीटी में म्हारो मन डोले
चला चला रे डिलैवर गाड़ी हौले हौले ।।

बीजळी को पंखो चाले, गूंज रयो जण भोरो 
बैठी रेल में गाबा लाग्यो वो जाटां को छोरो ।। 
चला चला रे ।।

डूंगर भागे, नंदी भागे और भागे खेत
ढांडा की तो टोली भागे, उड़े रेत ही रेत ।। 
चला चला रे ।।

बड़ी जोर को चाले अंजन, देवे ज़ोर की सीटी
डब्बा डब्बा घूम रयो टोप वारो टी टी ।। 
चला चला रे ।।

जयपुर से जद गाड़ी चाली गाड़ी चाली मैं बैठी थी सूधी 
असी जोर को धक्का लाग्यो जद मैं पड़ गयी उँधी ।। 
चला चला रे ।।<br><br>

'''शब्दार्थ:'''

डलेवर= ड्राईवर
गाबा= गाने लगना
डूंगर= पहाड़
नंदी= नदी 
ढांडा= जानवर 
जद= जब (जदी, जर और जण भी कहा जाता है)
असी= ऐसा, इतना