"जवानी / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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प्राण अन्तर में लिये, पागल जवानी ! | प्राण अन्तर में लिये, पागल जवानी ! | ||
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कौन कहता है कि तू | कौन कहता है कि तू | ||
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विधवा हुई, खो आज पानी? | विधवा हुई, खो आज पानी? | ||
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चल रहीं घड़ियाँ, | चल रहीं घड़ियाँ, | ||
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चले नभ के सितारे, | चले नभ के सितारे, | ||
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चल रहीं नदियाँ, | चल रहीं नदियाँ, | ||
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चले हिम-खंड प्यारे; | चले हिम-खंड प्यारे; | ||
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चल रही है साँस, | चल रही है साँस, | ||
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फिर तू ठहर जाये? | फिर तू ठहर जाये? | ||
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दो सदी पीछे कि | दो सदी पीछे कि | ||
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तेरी लहर जाये? | तेरी लहर जाये? | ||
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पहन ले नर-मुंड-माला, | पहन ले नर-मुंड-माला, | ||
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उठ, स्वमुंड सुमेस्र् कर ले; | उठ, स्वमुंड सुमेस्र् कर ले; | ||
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भूमि-सा तू पहन बाना आज धानी | भूमि-सा तू पहन बाना आज धानी | ||
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प्राण तेरे साथ हैं, उठ री जवानी! | प्राण तेरे साथ हैं, उठ री जवानी! | ||
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द्वार बलि का खोल | द्वार बलि का खोल | ||
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चल, भूडोल कर दें, | चल, भूडोल कर दें, | ||
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एक हिम-गिरि एक सिर | एक हिम-गिरि एक सिर | ||
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का मोल कर दें | का मोल कर दें | ||
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मसल कर, अपने | मसल कर, अपने | ||
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इरादों-सी, उठा कर, | इरादों-सी, उठा कर, | ||
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दो हथेली हैं कि | दो हथेली हैं कि | ||
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पृथ्वी गोल कर दें? | पृथ्वी गोल कर दें? | ||
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रक्त है? या है नसों में क्षुद्र पानी! | रक्त है? या है नसों में क्षुद्र पानी! | ||
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जाँच कर, तू सीस दे-देकर जवानी? | जाँच कर, तू सीस दे-देकर जवानी? | ||
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वह कली के गर्भ से, फल- | वह कली के गर्भ से, फल- | ||
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रूप में, अरमान आया! | रूप में, अरमान आया! | ||
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देख तो मीठा इरादा, किस | देख तो मीठा इरादा, किस | ||
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तरह, सिर तान आया! | तरह, सिर तान आया! | ||
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डालियों ने भूमि स्र्ख लटका | डालियों ने भूमि स्र्ख लटका | ||
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दिये फल, देख आली ! | दिये फल, देख आली ! | ||
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मस्तकों को दे रही | मस्तकों को दे रही | ||
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संकेत कैसे, वृक्ष-डाली ! | संकेत कैसे, वृक्ष-डाली ! | ||
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फल दिये? या सिर दिये?त तस्र् की कहानी- | फल दिये? या सिर दिये?त तस्र् की कहानी- | ||
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गूँथकर युग में, बताती चल जवानी ! | गूँथकर युग में, बताती चल जवानी ! | ||
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श्वान के सिर हो- | श्वान के सिर हो- | ||
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चरण तो चाटता है! | चरण तो चाटता है! | ||
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भोंक ले-क्या सिंह | भोंक ले-क्या सिंह | ||
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को वह डाँटता है? | को वह डाँटता है? | ||
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रोटियाँ खायीं कि | रोटियाँ खायीं कि | ||
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साहस खा चुका है, | साहस खा चुका है, | ||
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प्राणि हो, पर प्राण से | प्राणि हो, पर प्राण से | ||
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वह जा चुका है। | वह जा चुका है। | ||
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तुम न खोलो ग्राम-सिंहों मे भवानी ! | तुम न खोलो ग्राम-सिंहों मे भवानी ! | ||
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विश्व की अभिमन मस्तानी जवानी ! | विश्व की अभिमन मस्तानी जवानी ! | ||
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ये न मग हैं, तव | ये न मग हैं, तव | ||
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चरण की रखियाँ हैं, | चरण की रखियाँ हैं, | ||
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बलि दिशा की अमर | बलि दिशा की अमर | ||
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देखा-देखियाँ हैं। | देखा-देखियाँ हैं। | ||
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विश्व पर, पद से लिखे | विश्व पर, पद से लिखे | ||
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कृति लेख हैं ये, | कृति लेख हैं ये, | ||
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धरा तीर्थों की दिशा | धरा तीर्थों की दिशा | ||
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की मेख हैं ये। | की मेख हैं ये। | ||
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प्राण-रेखा खींच दे, उठ बोल रानी, | प्राण-रेखा खींच दे, उठ बोल रानी, | ||
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री मरण के मोल की चढ़ती जवानी। | री मरण के मोल की चढ़ती जवानी। | ||
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टूटता-जुड़ता समय | टूटता-जुड़ता समय | ||
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`भूगोल' आया, | `भूगोल' आया, | ||
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गोद में मणियाँ समेट | गोद में मणियाँ समेट | ||
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खगोल आया, | खगोल आया, | ||
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क्या जले बारूद?- | क्या जले बारूद?- | ||
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हिम के प्राण पाये! | हिम के प्राण पाये! | ||
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क्या मिला? जो प्रलय | क्या मिला? जो प्रलय | ||
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के सपने न आये। | के सपने न आये। | ||
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धरा?- यह तरबूज | धरा?- यह तरबूज | ||
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है दो फाँक कर दे, | है दो फाँक कर दे, | ||
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चढ़ा दे स्वातन्त्रय-प्रभू पर अमर पानी। | चढ़ा दे स्वातन्त्रय-प्रभू पर अमर पानी। | ||
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विश्व माने-तू जवानी है, जवानी ! | विश्व माने-तू जवानी है, जवानी ! | ||
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लाल चेहरा है नहीं- | लाल चेहरा है नहीं- | ||
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फिर लाल किसके? | फिर लाल किसके? | ||
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लाल खून नहीं? | लाल खून नहीं? | ||
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अरे, कंकाल किसके? | अरे, कंकाल किसके? | ||
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प्रेरणा सोयी कि | प्रेरणा सोयी कि | ||
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आटा-दाल किसके? | आटा-दाल किसके? | ||
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सिर न चढ़ पाया | सिर न चढ़ पाया | ||
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कि छाया-माल किसके? | कि छाया-माल किसके? | ||
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वेद की वाणी कि हो आकाश-वाणी, | वेद की वाणी कि हो आकाश-वाणी, | ||
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धूल है जो जग नहीं पायी जवानी। | धूल है जो जग नहीं पायी जवानी। | ||
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विश्व है असि का?- | विश्व है असि का?- | ||
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नहीं संकल्प का है; | नहीं संकल्प का है; | ||
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हर प्रलय का कोण | हर प्रलय का कोण | ||
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काया-कल्प का है; | काया-कल्प का है; | ||
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फूल गिरते, शूल | फूल गिरते, शूल | ||
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शिर ऊँचा लिये हैं; | शिर ऊँचा लिये हैं; | ||
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रसों के अभिमान | रसों के अभिमान | ||
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को नीरस किये हैं। | को नीरस किये हैं। | ||
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खून हो जाये न तेरा देख, पानी, | खून हो जाये न तेरा देख, पानी, | ||
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मर का त्यौहार, जीवन की जवानी। | मर का त्यौहार, जीवन की जवानी। | ||
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13:44, 14 अप्रैल 2009 का अवतरण
प्राण अन्तर में लिये, पागल जवानी !
कौन कहता है कि तू
विधवा हुई, खो आज पानी?
चल रहीं घड़ियाँ,
चले नभ के सितारे,
चल रहीं नदियाँ,
चले हिम-खंड प्यारे;
चल रही है साँस,
फिर तू ठहर जाये?
दो सदी पीछे कि
तेरी लहर जाये?
पहन ले नर-मुंड-माला,
उठ, स्वमुंड सुमेस्र् कर ले;
भूमि-सा तू पहन बाना आज धानी
प्राण तेरे साथ हैं, उठ री जवानी!
द्वार बलि का खोल
चल, भूडोल कर दें,
एक हिम-गिरि एक सिर
का मोल कर दें
मसल कर, अपने
इरादों-सी, उठा कर,
दो हथेली हैं कि
पृथ्वी गोल कर दें?
रक्त है? या है नसों में क्षुद्र पानी!
जाँच कर, तू सीस दे-देकर जवानी?
वह कली के गर्भ से, फल-
रूप में, अरमान आया!
देख तो मीठा इरादा, किस
तरह, सिर तान आया!
डालियों ने भूमि स्र्ख लटका
दिये फल, देख आली !
मस्तकों को दे रही
संकेत कैसे, वृक्ष-डाली !
फल दिये? या सिर दिये?त तस्र् की कहानी-
गूँथकर युग में, बताती चल जवानी !
श्वान के सिर हो-
चरण तो चाटता है!
भोंक ले-क्या सिंह
को वह डाँटता है?
रोटियाँ खायीं कि
साहस खा चुका है,
प्राणि हो, पर प्राण से
वह जा चुका है।
तुम न खोलो ग्राम-सिंहों मे भवानी !
विश्व की अभिमन मस्तानी जवानी !
ये न मग हैं, तव
चरण की रखियाँ हैं,
बलि दिशा की अमर
देखा-देखियाँ हैं।
विश्व पर, पद से लिखे
कृति लेख हैं ये,
धरा तीर्थों की दिशा
की मेख हैं ये।
प्राण-रेखा खींच दे, उठ बोल रानी,
री मरण के मोल की चढ़ती जवानी।
टूटता-जुड़ता समय
`भूगोल' आया,
गोद में मणियाँ समेट
खगोल आया,
क्या जले बारूद?-
हिम के प्राण पाये!
क्या मिला? जो प्रलय
के सपने न आये।
धरा?- यह तरबूज
है दो फाँक कर दे,
चढ़ा दे स्वातन्त्रय-प्रभू पर अमर पानी।
विश्व माने-तू जवानी है, जवानी !
लाल चेहरा है नहीं-
फिर लाल किसके?
लाल खून नहीं?
अरे, कंकाल किसके?
प्रेरणा सोयी कि
आटा-दाल किसके?
सिर न चढ़ पाया
कि छाया-माल किसके?
वेद की वाणी कि हो आकाश-वाणी,
धूल है जो जग नहीं पायी जवानी।
विश्व है असि का?-
नहीं संकल्प का है;
हर प्रलय का कोण
काया-कल्प का है;
फूल गिरते, शूल
शिर ऊँचा लिये हैं;
रसों के अभिमान
को नीरस किये हैं।
खून हो जाये न तेरा देख, पानी,
मर का त्यौहार, जीवन की जवानी।