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"मारणास्त्र / ऋषभ देव शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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मैं
 
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तुम भी
 
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मारणास्त्र को अभिमंत्रित किए हुए
 
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किसी भी क्षण
 
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मुझ पर चलाने के लिए.
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ठीक बैठ गया
 
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तो तुम मारे जाओगे.
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ठीक बैठ गया
 
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तो मैं मारा जाऊँगा.
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यह भी हो सकता है:
 
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इस महाभारत में
 
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हम दोनों ही मारे जाएँ.
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या फिर
 
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नष्ट हो जाएँ  
 
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परस्पर टकराकर
 
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बीच आकाश में.
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इन तमाम
 
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अनिश्चित संभावनाओं के बीच
 
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एक बात निश्चित है:
 
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घृणा के विकिरण  
 
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जो निकलेंगे
 
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इन मारणास्त्रों के प्रयोग से....
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उनसे काँप-काँप जाएगी
 
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उनसे ज़हर बन जाएगा
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उनसे दहकती बारूद में बदल जाएगी  
 
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उनसे कसैले नीले हरे धुएँ में
 
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तब्दील हो जाएगी
 
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और उनसे जीवनभक्षी ब्लैकहोल  
 
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लपलपाने लगेंगे
 
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अपनी खुरदरी जीभ
 
अपनी खुरदरी जीभ
हमारे सपनों के नीले आकाश में......
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क्या हम अपनी आत्मा पर ले लें
 
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इतने सारे पाप
 
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                         (केवल टकराते हुए  
 
                         (केवल टकराते हुए  
 
                           अपने-अपने अहं के लिए)?   
 
                           अपने-अपने अहं के लिए)?   
 
 
 
 
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00:18, 20 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण


मैं
तैयार बैठा हूँ
मारणास्त्र को अभिमंत्रित किए हुए,
किसी भी क्षण
तुम पर चला सकता हूँ।
 
तुम भी
तैयार बैठे हो
मारणास्त्र को अभिमंत्रित किए हुए
किसी भी क्षण
मुझ पर चलाने के लिए।
 
मेरा निशाना
ठीक बैठ गया
तो तुम मारे जाओगे।
तुम्हारा निशाना
ठीक बैठ गया
तो मैं मारा जाऊंगा।
 
यह भी हो सकता है:
इस महाभारत में
हम दोनों ही मारे जाएँ।
 
या फिर
यह भी हो सकता है
कि हम दोनों ही बच जाएँ
और
हमारे मारणास्त्र
नष्ट हो जाएँ
परस्पर टकराकर
बीच आकाश में।

इन तमाम
अनिश्चित संभावनाओं के बीच
एक बात निश्चित है:
 
घृणा के विकिरण
जो निकलेंगे
इन मारणास्त्रों के प्रयोग से...
 
उनसे काँप-काँप जाएगी
हमारे घर की हवा...
 
उनसे ज़हर बन जाएगा
हमारे बच्चों का पीने का पानी...
 
उनसे दहकती बारूद में बदल जाएगी
हमारे पुरखों के लहू से जुती यह ज़मीन...
 
उनसे कसैले नीले हरे धुएँ में
तब्दील हो जाएगी
हमारे अग्निहोत्र की पवित्र ज्वाला...

और उनसे जीवनभक्षी ब्लैकहोल
लपलपाने लगेंगे
अपनी खुरदरी जीभ
हमारे सपनों के नीले आकाश में...

क्या हम अपनी आत्मा पर ले लें
इतने सारे पाप
पंचतत्वों के विरुद्ध-
                         (केवल टकराते हुए
                          अपने-अपने अहं के लिए)?