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"हास्य-रस -एक / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर

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कर दिया कर्ज़न ने ज़न मर्दों की सूरत देखिये
 
कर दिया कर्ज़न ने ज़न मर्दों की सूरत देखिये
आबरू चेहरों की सब ,फ़ैशन बना कर पोंछ ली
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आबरू चेहरों की सब, फ़ैशन बना कर पोंछ ली
  
 
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20:41, 2 मई 2009 के समय का अवतरण


दिल लिया है हमसे जिसने दिल्लगी के वास्ते
क्या तआज्जुब है जो तफ़रीहन हमारी जान ले


शेख़ जी घर से न निकले और लिख कर दे दिया
आप बी०ए० पास हैं तो बन्दा बीवी पास है


तमाशा देखिये बिजली का मग़रिब और मशरिक़ में
कलों में है वहाँ दाख़िल, यहाँ मज़हब पे गिरती है.


तिफ़्ल में बू आए क्या माँ -बाप के अतवार की
दूध तो डिब्बे का है, तालीम है सरकार की


कर दिया कर्ज़न ने ज़न मर्दों की सूरत देखिये
आबरू चेहरों की सब, फ़ैशन बना कर पोंछ ली


मग़रबी ज़ौक़ है और वज़ह की पाबन्दी भी
ऊँट पे चढ़ के थियेटर को चले हैं हज़रत


जो जिसको मुनासिब था गर्दूं ने किया पैदा
यारों के लिए ओहदे, चिड़ियों के लिए फन्दे