भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दहाड़ी पर / नरेश चंद्रकर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश चंद्रकर |संग्रह=बातचीत की उड़ती धूल में / न...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:31, 5 मई 2009 के समय का अवतरण
दहाड़ी पर निकलनेवाले आदमी की रीढ़ के
दोनों ओर की नसें तनी हैं
वे सख़्त होती चली गई हैं
पिछले कई दिनों से इसने देखा नहीं है
अपनी एड़ियों में आई दरार्रों को
दरख़्त की छाल फिर भी ठीक है
इस आदमी की हथेलियाँ हाथ मिला रही हैं
चट्टानों से
यह रोज़-रोज़ की नई नौकरी पर निकलता और
नई नौकरी से लौटता आदमी है
इसके पास भविष्य का गाढ़ा अंधेरा है
बहुत सारे इन और
उतनी सारी नौकरियों से भरा जीवन लिए
यह आज सुबह मुझे दिखा
मूंगफली खाते हुए
जैसे कह रहा हो--
आप क्या जानो मूंगफली खाना क्या है
कितनी बेफ़िक्री से होता है
मूंगफली खाते हुए दुनिया को देखना!