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"बस्ते ही बचाते हैं / राजी सेठ" के अवतरणों में अंतर

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बस्ते ही बचाते हैं टूटते हुए घर
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दरवाजे खुल चुके थे
 
दरवाजे खुल चुके थे
  

14:23, 8 मई 2009 के समय का अवतरण

दरवाजे खुल चुके थे

तकिये पर काढ़े हुए फूल

बाहर निकल चुके थे

पतीली में खदबदाता पानी

पेंदे तक पहुंच चुका था

तल्खी के उच्छ्वास से

पीला सोना पिघल रहा था

आंगन की धुंआस से

हवा घुट चुकी थी

सप्तपदी पलट रही थी


पड़ौसी पंखे पकड़ चुके थे

हितैषी आंखें ढ़क चुके थे

गालों पर गुलाब

रक्त की ताजी गंध वाले हाथ

पांवों में छलांग

कंधे का बस्ता

उसने खूंटी पर लटकाया

और दरवाजा बंद किया