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− | मृदुल नींद | + | मृदुल नींद नीड़ की गोद में |
::और परों की सेज नरम, | ::और परों की सेज नरम, | ||
बाहर झुलसी हवा बह रही | बाहर झुलसी हवा बह रही | ||
::रह-रह कर लू तेज़ गरम, | ::रह-रह कर लू तेज़ गरम, | ||
− | बाहर अर्धनग्न | + | बाहर अर्धनग्न पीड़ा |
− | ::भीतर | + | ::भीतर क्रीड़ा-लबरेज़ हरम, |
करुणा के आँगन में, नेता | करुणा के आँगन में, नेता | ||
− | ::दे | + | ::दे थोड़ी-सी भेज शरम ! |
20:32, 31 अगस्त 2006 का अवतरण
कवि: प्रभाकर माचवे
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मृदुल नींद नीड़ की गोद में
- और परों की सेज नरम,
बाहर झुलसी हवा बह रही
- रह-रह कर लू तेज़ गरम,
बाहर अर्धनग्न पीड़ा
- भीतर क्रीड़ा-लबरेज़ हरम,
करुणा के आँगन में, नेता
- दे थोड़ी-सी भेज शरम !