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"दरिंदा / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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लेखक: [[भवानीप्रसाद मिश्र]]
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दरिंदा
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आदमी की आवाज़ में
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बोला
  
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स्वागत में मैंने
आदमी की आवाज़ में<br>
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अपना दरवाज़ा
बोला<br><br>
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खोला
  
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और दरवाज़ा
अपना दरवाज़ा<br>
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खोलते ही समझा
खोला<br><br>
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कि देर हो गई
  
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मानवता
खोलते ही समझा<br>
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थोड़ी बहुत जितनी भी थी
कि देर हो गई<br><br>
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ढेर हो गई !
 
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मानवता<br>
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थोड़ी बहुत जितनी भी थी<br>
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ढेर हो गई !<br><br>
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12:54, 12 मई 2009 का अवतरण

दरिंदा
आदमी की आवाज़ में
बोला

स्वागत में मैंने
अपना दरवाज़ा
खोला

और दरवाज़ा
खोलते ही समझा
कि देर हो गई

मानवता
थोड़ी बहुत जितनी भी थी
ढेर हो गई !