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"जहाँ तलक भी ये सेहरा दिखाई देता है / शकेब जलाली" के अवतरणों में अंतर

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00:15, 15 मई 2009 का अवतरण

जहाँ तलक भी ये सेहरा दिखाई देता है
मेरी तरह से अकेला दिखाई देता है

न इतना तेज़ चले सर-फिरी हवा से कहो
शजर पे एक ही पत्ता दिखाई देता है

बुरा ना मानिये लोगों की ऐब-जूई का
इंहें तो दिन का भी साया दिखाई देता है

ये एक अब्र का टुकरा कहाँ कहाँ बरसे
तमाम दश्त ही प्यासा दिखाई देता है

वो अलविदा का मंज़र वो भिगती पलकें
पास-ए-ग़ुबार भी क्या क्या दिखाई देता है

मेरी निगाह से छुप कर कहाँ रहेगा कोई
के अब तो संग भी शीशा दिखाई देता है

सिमट के रह दये आख़िर पहाड से क़द भी
ज़मीं से हर कोई ऊँचा दिखाई देता है

ये किस मक़ाम पे लाई है जुस्तजू तेरी
जहाँ से अर्श भी नीचा दिखाई देता है

खिली है दिल में किसी के बदन की धूप "शकेब"
हर एक फूल सुनहरा दिखाई देता है