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"क़र्ज़े-निगाहे-यार / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर
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− | कुछ | + | कुछ इम्तहान-ए-दस्त-ए-जफ़ा कर चुके हैं हम |
कुछ उनकी दस्तरस का पता कर चुके हैं हम | कुछ उनकी दस्तरस का पता कर चुके हैं हम | ||
अब एहतियात की कोई सूरत नहीं रही | अब एहतियात की कोई सूरत नहीं रही | ||
− | क़ातिल से | + | क़ातिल से रस्म-ओ-राह सिवा कर चुके हैं हम |
देखें है कौन-कौन, ज़रूरत नहीं रही | देखें है कौन-कौन, ज़रूरत नहीं रही | ||
कू-ए-सितम में सबको खफ़ा कर चुके हैं हम | कू-ए-सितम में सबको खफ़ा कर चुके हैं हम | ||
− | अब अपना इख्तियार है चाहे | + | अब अपना इख्तियार है चाहे जहाँ चलें |
रहबर से अपनी राह जुदा कर चुके हैं हम | रहबर से अपनी राह जुदा कर चुके हैं हम | ||
उनकी नज़र में क्या करें फीका है अब भी रंग | उनकी नज़र में क्या करें फीका है अब भी रंग | ||
− | जितना लहू था | + | जितना लहू था सर्फ-ए-क़बा कर चुके हैं हम |
− | कुछ अपने दिल की | + | कुछ अपने दिल की ख़ूँ का भी शुक्रान चाहिये |
− | सौ बार उनकी | + | सौ बार उनकी ख़ूँ का गिला कर चुके हैं हम |
23:22, 15 मई 2009 का अवतरण
क़र्ज़-ए-निगाह-ए-यार अदा कर चुके हैं हम
सब कुछ निसार-ए-राह-ए-वफ़ा कर चुके हैं हम
कुछ इम्तहान-ए-दस्त-ए-जफ़ा कर चुके हैं हम
कुछ उनकी दस्तरस का पता कर चुके हैं हम
अब एहतियात की कोई सूरत नहीं रही
क़ातिल से रस्म-ओ-राह सिवा कर चुके हैं हम
देखें है कौन-कौन, ज़रूरत नहीं रही
कू-ए-सितम में सबको खफ़ा कर चुके हैं हम
अब अपना इख्तियार है चाहे जहाँ चलें
रहबर से अपनी राह जुदा कर चुके हैं हम
उनकी नज़र में क्या करें फीका है अब भी रंग
जितना लहू था सर्फ-ए-क़बा कर चुके हैं हम
कुछ अपने दिल की ख़ूँ का भी शुक्रान चाहिये
सौ बार उनकी ख़ूँ का गिला कर चुके हैं हम