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20:22, 17 मई 2009 का अवतरण
अपनी ज़मीन से
रचनाकार | प्रेम भारद्वाज |
---|---|
प्रकाशक | बृज प्रकाशन
, नगरोटा बगवाँ |
वर्ष | 2006 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | ग़ज़ल संग्रह |
विधा | |
पृष्ठ | 95 |
ISBN | |
विविध |
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- हम उम्र भर उदास रहे मौसमों के बीच / प्रेम भारद्वाज
- ऋषियों विचारकों की है पूजास्थली पहाड़ / प्रेम भारद्वाज
- रहनुमा अपनी कमाई में लगे हैं / प्रेम भारद्वाज
- जब सफ़र थोड़ा भयानक हो गया / प्रेम भारद्वाज
- दुनिया आनी जानी भी है / प्रेम भारद्वाज
- पड़े पीछे तो हो यूँ हाथ धो कर / प्रेम भारद्वाज
- जिसमें किस्मत ढो जाने की है तासीर / प्रेम भारद्वाज
- जितनी गहरी पोल है बाबा / प्रेम भारद्वाज
- निकाले खुल्द से आदम को जुग बीते जनम निकले / प्रेम भारद्वाज
- मार मौसम की गुलों पर आशियाँ पर / प्रेम भारद्वाज
- डुगडुगी से जो मदारी ने बताया और था / प्रेम भारद्वाज
- हश्र उतना बुरा नहीं होता / प्रेम भारद्वाज
- है ज़िन्दगी की ज़िद कि ये हरक़त बनी रहे / प्रेम भारद्वाज
- जब कोई बेक़रार देखा है / प्रेम भारद्वाज
- राहों में कम काँटे बोती / प्रेम भारद्वाज
- शोहरतों का ख़ुमार देते हैं / प्रेम भारद्वाज
- आ गए भक्तजन भी ताकत में / प्रेम भारद्वाज
- तमन्ना जब हक़ीक़त से लड़ी है / प्रेम भारद्वाज
- छोड़िए काफ़ी हुआ बज़्में हसीं पर / प्रेम भारद्वाज
- या तो फिर आसमाँ चढ़ा देंगे / प्रेम भारद्वाज
- फिर वही रोना पुराना हो गया है / प्रेम भारद्वाज
- हमें तुम से नहीं कोई गिला है / प्रेम भारद्वाज
- भार बेवजह दिल पे लादा है / प्रेम भारद्वाज
- करेंगी क्या वहाँ काली घटाएँ / प्रेम भारद्वाज
- पीठ पीछे ही दनदनाती है / प्रेम भारद्वाज
- मरने के सामान बहुत हैं / प्रेम भारद्वाज
- आँख से आँख भी लड़ाता है / प्रेम भारद्वाज
- साफ़गोई से कहा कोरा कहा / प्रेम भारद्वाज
- टोकना अपनी जगह / प्रेम भारद्वाज
- ज़िन्दगी इस बार से नाराज़ है / प्रेम भारद्वाज
- तन तो जाएँ तन के आगे / प्रेम भारद्वाज
- ‘मैं मिट कर गर ‘हम’ हो जाए / प्रेम भारद्वाज
- निष्ठाओं,आस्थाओं का उपहास किस लिए / प्रेम भारद्वाज
- न तो हैवान होना है न ही भगवान होना है / प्रेम भारद्वाज
- दोस्ती की फिर दुहाई हो गई / प्रेम भारद्वाज
- सुर्ख़ी पाउडर इत्र है भाई / प्रेम भारद्वाज
- राबिता क्या ज़रा नहीं होगा / प्रेम भारद्वाज
- अपनों ने पहले मुख मोड़ा / प्रेम भारद्वाज
- गर लिरे गर जनाब ख़्वाबों में / प्रेम भारद्वाज
- अगर मुजरों में बिकनी शायरी है / प्रेम भारद्वाज
- जीवन जिनका है ठन-ठन / प्रेम भारद्वाज
- करेगी कुछ नहीं दानिश्वरी क्या ? / प्रेम भारद्वाज
- गर सिरफिरों की इसमें तस्लीम नहीं होती / प्रेम भारद्वाज
- ज़ुल्मो-सितम इतने सहते हो / प्रेम भारद्वाज
- इश्क़ दिल में जवान होता है / प्रेम भारद्वाज
- चमका उनका फिर धन्धा है / प्रेम भारद्वाज
- ज़ीस्त मेहमाँ समान हो जैसे / प्रेम भारद्वाज
- ख़ूब हैं मन्नतें ज़ियारत में / प्रेम भारद्वाज
- तुर्ग बेक़रार शहसवार के लिए / प्रेम भारद्वाज
- अक़्ल की माना सुल्तानी है / प्रेम भारद्वाज
- रिश्ते तमाम तोड़ कर अपनी ज़मीन से / प्रेम भारद्वाज