भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हाथों के दिन / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो (हाथों के दिन / त्रिलोचन शास्त्री moved to हाथों के दिन / त्रिलोचन) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=त्रिलोचन | |
− | + | }} | |
− | + | ||
− | + | ||
हाथों के दिन आयेंगे, कब आयेंगे,<br> | हाथों के दिन आयेंगे, कब आयेंगे,<br> | ||
यह तो कोई नहीं बताता, करने वाले<br> | यह तो कोई नहीं बताता, करने वाले<br> |
16:08, 23 मई 2009 का अवतरण
हाथों के दिन आयेंगे, कब आयेंगे,
यह तो कोई नहीं बताता, करने वाले
जहाँ कहीं भी देखा अब तक डरने वाले
मिलते हैं। सुख की रोटी कब खायेंगे,
सुख से कब सोयेंगे, उस को कब पायेंगे,
जिसको पाने की इच्छा है, हरने वाले,
हर हर कर अपना-अपना घर भरने वाले,
कहाँ नहीं हैं। हाथ कहाँ से क्या लायेंगे।
हाथ कहाँ हैं,वंचक हाथों के चक्के में
बंधक हैं,बँधुए कहलाते हैं, धरती है
निर्मम,पेट पले कैसे इस उस मुखड़े
की सुननी पड़ जाती है, धौंसौं के धक्के में
कौन जिए।जिन साँसों में आया करती है
भाषा,किस को चिन्ता है उसके दुखड़ों की।