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"सांध्य वंदना / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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जीवन का श्रम ताप हरो हे!<br>
 
जीवन का श्रम ताप हरो हे!<br>
 
सुख सुषुमा के मधुर स्वर्ण हे!<br>
 
सुख सुषुमा के मधुर स्वर्ण हे!<br>

20:40, 25 मई 2009 का अवतरण

जीवन का श्रम ताप हरो हे!
सुख सुषुमा के मधुर स्वर्ण हे!
सूने जग गृह द्वार भरो हे!

लौटे गृह सब श्रान्त चराचर
नीरव, तरु अधरों पर मर्मर,
करुणानत निज कर पल्लव से
विश्व नीड प्रच्छाय करो हे!

उदित शुक्र अब, अस्त भनु बल,
स्तब्ध पवन, नत नयन पद्म दल
तन्द्रिल पलकों में, निशि के शशि!
सुखद स्वप्न वन कर विचरो हे!