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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''शहर में रातहिन्दी कविता का दुःख<br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[केदारनाथ सिंहअनिल जनविजय]]
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बिजली चमकी, पानी गिरने का डर हैअच्छे कवियों को सब हिदी वाले नकारते और बुरे कवियों के सौ-सौ गुण बघारते वे ऎसा क्यों भागे जाते हैं जिनके घर है, ये बताएँ ज़रा, भाई अनिल जी वे अच्छे कवि क्यों चुप नहीं कहलाते हैं जिनको आती है भाषासलिल जी वह क्या है जो दिखता है धुँआ-धुआँ-सावह क्या है हराक्यों ले-हरा-सा जिसके आगेदे कर छपने वाले कवि बने हैं क्यों हरी घास को चरने वाले कवि बने हैं उलझ गए जीने परमानन्द और नवल सरीखे हिन्दी के सारे धागेलोचे यह शहर कि जिसमें रहती है इच्छाएँकुत्ते भुनगे आदमी गिलहरी गाएँयह शहर कि जिसकी ज़िद है सीधीक्यों देश-सादीज्यादा-से-ज्यादा सुख सुविधा आज़ादीतुम कभी देखना इसे सुलगते क्षण विदेश मेंहिन्दी रचना की छवि बने हैं यह अलग-अलग दिखता है हर दर्पण मेंसाथियोंक्यों शुक्ला, रात आईजोशी, अब मैं जाता हूँलंठ सरीखे नागर, राठी इस आने-जाने का वेतन पाता हूँहिन्दी कविता पर बैठे हैं चढ़ा कर काठी जब आँख लगे तो सुनना धीरेपूछ रहे अपने ई-धीरेपत्र में सुशील कुमार जी किस तरह रात-भर बजती हैं जंज़ीरेंकब बदलेगी हिन्दी कविता की यह परिपाटी
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