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वो बू-ए-गुल था के नग़्मा-ए-जान मेरे तो दिल में उतर गया वो <br><br>
वो मैकदे मयकदे को जगानेवाला वो रात की नींद उड़ानेवाला <br>
न जाने क्या उस के जी में आई कि शाम होते ही घर गया वो <br><br>
कुछ अब सम्भलने संभलने लगी है जाँ भी बदल चला रन्ग रंग-ए-आस्माँ भी <br>
जो रात भारी थी टल गई है जो दिन कड़ा था गुज़र गया वो <br><br>
जो क़ाफ़िला मेरा हमसफ़र था मिस्ल-ए-गर्द-ए-सफ़र गया वो <br><br>
बस एक मन्ज़िल मंज़िल है बुलहवस की हज़ार रस्ते रास्ते हैं अहल-ए-दिल के <br>
ये ही तो है फ़र्क़ मुझ में उस में गुज़र गया मैं ठहर गया वो <br><br>
वो जिस के शाने पे हाथ रख कर सफ़र किया तूने मन्न्ज़िलों मंज़िलों का <br>
तेरी गली से न जाने क्यूँ आज सर झुकाये गुज़र गया वो <br><br>
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