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| * [[घर / गुरप्रीत]] | | * [[घर / गुरप्रीत]] |
− | * [[दोस्ती / गुरप्रीत़]] | + | * [[दोस्ती / गुरप्रीत]] |
| * [[जीने की कला / गुरप्रीत]] | | * [[जीने की कला / गुरप्रीत]] |
| * [[माँ / गुरप्रीत]] | | * [[माँ / गुरप्रीत]] |
| * [[पिता होने की कोशिश / गुरप्रीत]] | | * [[पिता होने की कोशिश / गुरप्रीत]] |
− | * [[चिट्ठियों से भरा झोला / गुरप्रीत़]] | + | * [[चिट्ठियों से भरा झोला / गुरप्रीत]] |
| * [[राशन की सूची और कविता / गुरप्रीत]] | | * [[राशन की सूची और कविता / गुरप्रीत]] |
− | * [[ / गुरप्रीत]]
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− | गुरप्रीत की सात कविताएं
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− | हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
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− | (1) घर
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− | गुम हुई चीज को
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− | तलाशने के लिए
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− | खंगाल डालती थी
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− | घर का हर अंधेरा-तंग कोना
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− | मेरी माँ !
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− | बीवी भी अब ऐसा ही करती है
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− | और अपनी ससुराल में बहन भी !
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− | चीज़ों के गुम होने
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− | और इनके रोने के लिए
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− | अगर घर में अंधेरी-तंग जगहें न होंती
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− | तो घर का नाम भी
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− | घर नहीं होता।
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− | (2) दोस्ती
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− | जब छोटे-छोटे कोमल पत्ते फूटते हैं
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− | और खिलते हैं रंग-बिरंगे फूल
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− | मैं याद करता हूँ जड़ें अपनी
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− | अतल गहरी ।
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− | जब पीले पत्ते झड़ते हैं
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− | और फूल बीज बन
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− | मिट्टी में दब जाते हैं
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− | मैं याद करता हूँ जड़ें अपनी
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− | अतल गहरी ।
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− | (3) जीने की कला
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− | ये अर्थ
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− | जो जीवंत हो उठे
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− | मेरे सामने
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− | अगर ये शब्दों की देह से होकर
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− | न आते
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− | तो कैसे आते
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− | मैं हँसता हूँ, प्यार करता हूँ
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− | रोता हूँ, लड़ता हूँ
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− | चुप हो जाता हूँ
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− | पार नहीं हूँ सब कुछ से
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− | मुझे जीना आता है
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− | जीने की कला नहीं।
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− | (4) माँ
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− | मैं माँ को प्यार करता हूँ
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− | इसलिए नहीं
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− | कि जन्म दिया है
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− | उसने मुझे
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− | मैं माँ को प्यार करता हूँ
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− | इसलिए नहीं
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− | कि पाला-पोसा है
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− | उसने मुझे
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− | मैं माँ को प्यार करता हूँ
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− | इसलिए
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− | कि उसको
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− | अपने दिल की बात कहने के लिए
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− | शब्दों की ज़रूरत नहीं पड़ती मुझे।
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− | (5) पिता होने की कोशिश
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− | दु:ख
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− | गठरी मेंढ़कों की
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− | गाँठ खोलता हूँ
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− | तो उछ्लते-कूदते बिखर जाते हैं
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− | घर के चारों तरफ
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− | हर रोज़
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− | एक नई गाँठ लगाता हूँ
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− | इस गठरी में
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− | कला यही है मेरी
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− | दिखने नहीं दूँ
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− | सिर पर उठाई गठरी यह
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− | बच्चों को।
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− | (6) चिट्ठियों से भरा झोला
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− | कविता आई सुबह-सुबह
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− | जागा नहीं था मैं अभी
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− | सिरहाने रख गई- ‘उत्साह’।
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− | उठा जब
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− | दौड़कर मिला मुझे ‘उत्साह’
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− | कविता की चिट्ठियों से भरा झोला थमाने।
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− | एक चिट्ठी
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− | मैंने अपनी बच्ची को दी
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− | ‘पढ़ती जाना स्कूल तक
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− | मन लगा रहेगा…’
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− | एक चिट्ठी बेटे को दी
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− | कि दे देना अपने अध्यापक को
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− | वह तुझे बच्चा बन कर मिलेगा…
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− | चिट्ठी एक कविता की
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− | मैंने पकड़ाई पत्नी को
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− | गूँध दी उसने आटे में।
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− | पिता इसी चिट्ठी से
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− | आज किसी घर की
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− | छत डाल कर आया है!
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− | नहीं दी चिट्ठी मैंने माँ को
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− | वह तो खुद एक चिट्ठी है !
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− | (7) राशन की सूची और कविता
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− | 5 लीटर रिफाइंड धारा
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− | 5 किलो चीनी
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− | 5 किलो साबुन कपड़े धोने वाला
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− | 1 किलो मूंगी मसरी
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− | 1 पैकेट सोयाबीन
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− | पैकेट एक नमक, भुने चने
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− | थैली आटा
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− | इलायची-लौंग 25 ग्राम…
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− | कविता की किताब में
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− | कहाँ से आ गई
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− | रसोई के राशन की सूची ?
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− | मैं इसे कविता से
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− | अलग कर देना चाहता हूँ
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− | पर गहरे अंदर से उठती
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− | एक आवाज़
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− | रोक देती है मुझे
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− | और कहती है –
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− | अगर रसोई के राशन की सूची
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− | जाना चाहती है कविता के साथ
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− | फिर तू कौन होता है
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− | इसे पृथक करने वाला
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− | फैसला सुनाता ?
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− | मैं मुस्कराता हूँ
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− | राशन की सूची को
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− | कविता की दोस्त ही रहने देता हूँ।
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− | दोस्तो !
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− | नाराज़ मत होना
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− | यह मेरा नहीं मेरे अंदर का फैसला है
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− | अंदर को भला कौन रोके !
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− | सूची अगर तुम
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− | मेरी रसोई की नहीं
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− | तो अपनी की पढ़ लेना
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− | कविता अगर तुम
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− | मेरी नहीं
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− | तो अपने अंदर की पढ़ लेना।
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