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गुरप्रीत की सात कविताएं
 
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
 
 
(1) घर
 
गुम हुई चीज को
 
तलाशने के लिए
 
खंगाल डालती थी
 
घर का हर अंधेरा-तंग कोना
 
मेरी माँ !
 
बीवी भी अब ऐसा ही करती है
 
और अपनी ससुराल में बहन भी !
 
 
चीज़ों के गुम होने
 
और इनके रोने के लिए
 
अगर घर में अंधेरी-तंग जगहें न होंती
 
तो घर का नाम भी
 
घर नहीं होता।
 
 
(2) दोस्ती
 
 
जब छोटे-छोटे कोमल पत्ते फूटते हैं
 
और खिलते हैं रंग-बिरंगे फूल
 
मैं याद करता हूँ जड़ें अपनी
 
अतल गहरी ।
 
 
जब पीले पत्ते झड़ते हैं
 
और फूल बीज बन
 
मिट्टी में दब जाते हैं
 
मैं याद करता हूँ जड़ें अपनी
 
अतल गहरी ।
 
 
(3) जीने की कला
 
 
ये अर्थ
 
जो जीवंत हो उठे
 
मेरे सामने
 
अगर ये शब्दों की देह से होकर
 
न आते
 
तो कैसे आते
 
मैं हँसता हूँ, प्यार करता हूँ
 
रोता हूँ, लड़ता हूँ
 
चुप हो जाता हूँ
 
पार नहीं हूँ सब कुछ से
 
मुझे जीना आता है
 
जीने की कला नहीं।
 
 
(4) माँ
 
 
मैं माँ को प्यार करता हूँ
 
इसलिए नहीं
 
कि जन्म दिया है
 
उसने मुझे
 
 
मैं माँ को प्यार करता हूँ
 
इसलिए नहीं
 
कि पाला-पोसा है
 
उसने मुझे
 
 
मैं माँ को प्यार करता हूँ
 
इसलिए
 
कि उसको
 
अपने दिल की बात कहने के लिए
 
शब्दों की ज़रूरत नहीं पड़ती मुझे।
 
 
(5) पिता होने की कोशिश
 
 
दु:ख
 
गठरी मेंढ़कों की
 
गाँठ खोलता हूँ
 
तो उछ्लते-कूदते बिखर जाते हैं
 
घर के चारों तरफ
 
 
हर रोज़
 
एक नई गाँठ लगाता हूँ
 
इस गठरी में
 
 
कला यही है मेरी
 
दिखने नहीं दूँ
 
सिर पर उठाई गठरी यह
 
बच्चों को।
 
(6) चिट्ठियों से भरा झोला
 
 
कविता आई सुबह-सुबह
 
जागा नहीं था मैं अभी
 
सिरहाने रख गई- ‘उत्साह’।
 
 
उठा जब
 
दौड़कर मिला मुझे ‘उत्साह’
 
कविता की चिट्ठियों से भरा झोला थमाने।
 
 
एक चिट्ठी
 
मैंने अपनी बच्ची को दी
 
‘पढ़ती जाना स्कूल तक
 
मन लगा रहेगा…’
 
 
एक चिट्ठी बेटे को दी
 
कि दे देना अपने अध्यापक को
 
वह तुझे बच्चा बन कर मिलेगा…
 
 
चिट्ठी एक कविता की
 
मैंने पकड़ाई पत्नी को
 
गूँध दी उसने आटे में।
 
 
पिता इसी चिट्ठी से
 
आज किसी घर की
 
छत डाल कर आया है!
 
 
नहीं दी चिट्ठी मैंने माँ को
 
वह तो खुद एक चिट्ठी है !
 
 
(7) राशन की सूची और कविता
 
 
5 लीटर रिफाइंड धारा
 
5 किलो चीनी
 
5 किलो साबुन कपड़े धोने वाला
 
1 किलो मूंगी मसरी
 
1 पैकेट सोयाबीन
 
पैकेट एक नमक, भुने चने
 
थैली आटा
 
इलायची-लौंग 25 ग्राम…
 
 
कविता की किताब में
 
कहाँ से आ गई
 
रसोई के राशन की सूची ?
 
 
मैं इसे कविता से
 
अलग कर देना चाहता हूँ
 
पर गहरे अंदर से उठती
 
एक आवाज़
 
रोक देती है मुझे
 
और कहती है –
 
अगर रसोई के राशन की सूची
 
जाना चाहती है कविता के साथ
 
फिर तू कौन होता है
 
इसे पृथक करने वाला
 
फैसला सुनाता ?
 
 
मैं मुस्कराता हूँ
 
राशन की सूची को
 
कविता की दोस्त ही रहने देता हूँ।
 
 
दोस्तो !
 
नाराज़ मत होना
 
यह मेरा नहीं मेरे अंदर का फैसला है
 
अंदर को भला कौन रोके !
 
 
सूची अगर तुम
 
मेरी रसोई की नहीं
 
तो अपनी की पढ़ लेना
 
 
कविता अगर तुम
 
मेरी नहीं
 
तो अपने अंदर की पढ़ लेना।
 

11:47, 4 जून 2009 का अवतरण

गुरप्रीत
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