भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"केशव (रीतिकालीन कवि)" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
* [[दुरिहै क्यों भूखन बसन दुति जोबन की / केशव.]] | * [[दुरिहै क्यों भूखन बसन दुति जोबन की / केशव.]] | ||
* [[नैनन के तारन मै राखौ प्यारे पूतरी कै / केशव.]] | * [[नैनन के तारन मै राखौ प्यारे पूतरी कै / केशव.]] | ||
+ | * [[कैधौँ कली बेला की चमेली सी चमक पर / केशव.]] | ||
+ | * [[सोने की एक लता तुलसी बन क्योँ बरनोँ सुनि बुद्धि सकै छ्वै / केशव.]] | ||
+ | * [[मैन ऎसो मन मृदु मृदुल मृणालिका के / केशव.]] | ||
+ | * [[जौँ हौँ कहौँ रहिये तो प्रभुता प्रगट होत / केशव.]] | ||
* [[ / केशव.]] | * [[ / केशव.]] |
14:58, 15 जून 2009 का अवतरण
केशव.
क्या आपके पास चित्र उपलब्ध है?
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
जन्म | |
---|---|
जन्म स्थान | |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
रीतिकाल के कवि | |
जीवन परिचय | |
केशव. / परिचय |
- पायन को परिबो अपमान अनेक सोँ केशव मान मनैबो / केशव.
- दुरिहै क्यों भूखन बसन दुति जोबन की / केशव.
- नैनन के तारन मै राखौ प्यारे पूतरी कै / केशव.
- कैधौँ कली बेला की चमेली सी चमक पर / केशव.
- सोने की एक लता तुलसी बन क्योँ बरनोँ सुनि बुद्धि सकै छ्वै / केशव.
- मैन ऎसो मन मृदु मृदुल मृणालिका के / केशव.
- जौँ हौँ कहौँ रहिये तो प्रभुता प्रगट होत / केशव.
- / केशव.