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"फणीश्वर नाथ रेणु / परिचय" के अवतरणों में अंतर

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फणीश्वर नाथ जी का जन्म बिहार के अररिया जिले के फॉरबिसगंज के निकट औराही हिंगना ग्राम में हुआ था । प्रारंभिक शिक्षा फॉरबिसगंज तथा अररिया में पूरी करने के बाद इन्होने मैट्रिक नेपाल के विराटनगर के विराटनगर आदर्श विद्यालय से कोईराला परिवार में रहकर की । इन्होने इन्टरमीडिएट काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1942 में की जिसके बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पङे । बाद में 1950 में उन्होने नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में भी हिस्सा लिया जिसके परिणामस्वरुप नेपाल में जनतंत्र की स्थापना हुई । उन्होने हिन्दी में आंचलिक कथा की नींव रखी । सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय, एक समकालीन कवि, उनके परम मित्र थे । इनकी कई रचनाओं में कटिहार के रेलवे स्टेशन का उल्लेख मिलता है ।  
 
फणीश्वर नाथ जी का जन्म बिहार के अररिया जिले के फॉरबिसगंज के निकट औराही हिंगना ग्राम में हुआ था । प्रारंभिक शिक्षा फॉरबिसगंज तथा अररिया में पूरी करने के बाद इन्होने मैट्रिक नेपाल के विराटनगर के विराटनगर आदर्श विद्यालय से कोईराला परिवार में रहकर की । इन्होने इन्टरमीडिएट काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1942 में की जिसके बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पङे । बाद में 1950 में उन्होने नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में भी हिस्सा लिया जिसके परिणामस्वरुप नेपाल में जनतंत्र की स्थापना हुई । उन्होने हिन्दी में आंचलिक कथा की नींव रखी । सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय, एक समकालीन कवि, उनके परम मित्र थे । इनकी कई रचनाओं में कटिहार के रेलवे स्टेशन का उल्लेख मिलता है ।  

18:58, 23 जून 2009 का अवतरण

फणीश्वर नाथ रेणु (1921-1977)

जीवनी फणीश्वर नाथ जी का जन्म बिहार के अररिया जिले के फॉरबिसगंज के निकट औराही हिंगना ग्राम में हुआ था । प्रारंभिक शिक्षा फॉरबिसगंज तथा अररिया में पूरी करने के बाद इन्होने मैट्रिक नेपाल के विराटनगर के विराटनगर आदर्श विद्यालय से कोईराला परिवार में रहकर की । इन्होने इन्टरमीडिएट काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1942 में की जिसके बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पङे । बाद में 1950 में उन्होने नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में भी हिस्सा लिया जिसके परिणामस्वरुप नेपाल में जनतंत्र की स्थापना हुई । उन्होने हिन्दी में आंचलिक कथा की नींव रखी । सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय, एक समकालीन कवि, उनके परम मित्र थे । इनकी कई रचनाओं में कटिहार के रेलवे स्टेशन का उल्लेख मिलता है । लेखन-शैली इनकी लेखन-शैली वर्णणात्मक थी जिसमें पात्र के प्रत्येक मनोवैज्ञानिक सोच का विवरण लुभावने तरीके से किया होता था । पात्रों का चरित्र-निर्माण काफी तेजी से होता था क्योंकि पात्र एक सामान्य-सरल मानव मन (प्रायः) के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता था । इनकी लगभग हर कहानी में पात्रों की सोच घटनाओं से प्रधान होती थी । एक आदिम रात्रि की महक इसका एक सुंदर उदाहरण है । इनकी लेखन-शैली प्रेमचंद से काफी मिलती थी और इन्हें आजादी के बाद का प्रेमचंद की संज्ञा भी दी जाती है । अपनी कृतियों में उन्होने आंचलिक पदों का बहुत प्रयोग किया है । अगर आप उनके क्षेत्र से हैं (कोशी), तो ऐसे शब्द, जो आप निहायत ही ठेठ या देहाती समझते हैं, भी देखने को मिल सकते हैं आपको इनकी रचनाओं में । साहित्यिक कृतियां

उपन्यास


मैला आंचल

परती परिकथा

जूलूस

दीर्घतपा

कितने चौराहे

पलटू बाबू रोड

कथा-संग्रह

एक आदिम रात्रि की महक

ठुमरी

अग्निखोर

अच्छे आदमी

रिपोर्ताज

ऋणजल-धनजल

नेपाली क्रांतिकथा

वनतुलसी की गंध

श्रुत अश्रुत पूर्वे

प्रसिद्ध कहानियां

मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम)

एक आदिम रात्रि की महक

लाल पान की बेगम

पंचलाइट

तबे एकला चलो रे

ठेस

संवदिया

सम्मान


अपने प्रथम उपन्यास मैला आंचल के लिये उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया ।