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"रूस की यह कविता / अनातोली परपरा" के अवतरणों में अंतर

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18:14, 24 जून 2009 का अवतरण

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»  रूस की यह कविता


रूस की यह कविता

कितनी सुन्दर

कितनी अद्भुत्त

जैसे सघन फसल में विहँसता खेत कोई

खिले जिसमें ख़ूबसूरत फूल

गूँज रहा नाद स्वर

झींगुर का संगीत कितना मधुर

दमक रहे जुगनू बहुत


देखा मैंने यह क्या ?

उतर आए 'व्यंग्यकार' कविता में

तय है अब

जल्दी ही नष्ट कर देंगे वे

टिड्डी दल की तरह

भरी-पूरी विहँसती फसल यह...


रचनाकाल : 1989